19 Apr 2024, 21:40:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
State

गया में पंडो के पास मौजूद है जजमानों के 500 से अधिक पीढ़ीयों का लेखा जोखा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 16 2019 11:53AM | Updated Date: Sep 16 2019 11:53AM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

गया। विरले ही होंगे जिन्‍हे अपने तीन पीढ़ी के पहले के लोगों का नाम याद रहता होगा। बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। गया के पंडे अपने जजमानों के 500 से अधिक पीढ़ीयों का लेखा जोखा मौजूद है। वह आधे घंटे के अंदर आपके कई पीढ़ीयों लेखा जोखा सामने रख देते हैं। आज इंटरनेट के इस युग में आप अपने दस्तावेज सुरक्षित रखने के लिए भले ही डिजिटल एप का सहार लेते हों, मगर गया में पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए पिंडदान कर्मकांड कराने में निपुण पंडे आज भी अपने 250 से 300 साल पुराने बही-खाते से ही पिंडदान करने वाले पूर्वजों के नाम खोजते हैं। पितृपक्ष के दौरान अगर आप अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया पहुंचे हों, लेकिन अपने पुरखों की सही जानकारी नहीं है, तब भी यहां के पंडे आपके पूर्वजों का नाम खोज देंगे, बशर्ते आपके पूर्वजों में से कोई भी कभी मोक्षधाम 'गया' आए हों और पिंडदान किया हो। यहां आकर पिंडदान करने वाले सभी लोगों का नाम किसी न किसी पंडा के पास सुरक्षित 'पंडा-पोथी' में दर्ज है, जिसे पंडा बहुत आसानी से खोज निकालेंगे। यहां के पंडों का दावा है कि उनके पास 250 से 300 वर्षो तक के बही-खाते सुरक्षित हैं। 
 
इन बही खातों में 250 से ज्यादा वर्ष तक की जानकारी आपको आसानी से मिल सकती है। यही कारण है कि कई विदेशी या एनआरआई अपने पूर्वजों की खोज के लिए भी इन पंडा-पोथी का सहारा ले चुके हैं। गया के एक पंडा बताते हैं कि गया के पंडों (पुजारी) के पास पोथियों की त्रिस्तरीय व्यवस्था है। पहली पोथी इंडेक्स की होती है, जिसमें संबंधित जिले के बाद अक्षरमाला के क्रम में उस गांव (क्षेत्र) का नाम होता है। इसमें 250 से ज्यादा वर्ष से उस गांव से आए लोगों के बारे में पूरा पता, व्यवसाय और पिंडदान के लिए गया आने की तिथि दर्ज की जाती है। इसके अलावा दूसरी पोथी 'दस्तखत (हस्ताक्षर) बही' है, जिसमें गया आए लोगों की जानकारी के साथ आने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर भी दर्ज होते हैं। इसमें नाम के अलावा नंबर और पृष्ठ की संख्या दर्ज रहती है। तीसरी पोथी में पूर्व से लेकर वर्तमान कार्यस्थल तक की जानकारी होती है। इस पोथी में किसी गांव के रहने वाले लोग अब कहां निवास कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, इसकी अद्यतन जानकारी भी दर्ज रहती है। तीर्थवृत्त सुधारिनी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल पंडा ने बताया कि अगर गांव के अनुसार पूर्वजों की जानकारी नहीं मिल पाती है, तब इस पोथी (बही-खाता) में वर्तमान निवास से उनकी जानकारी प्राप्त की जाती है। 
 
गया में पिंडदान करने वाले लोग सबसे पहले इस पंडा-पोथी के जरिए अपने पूर्वजों को ढूंढते हैं और फिर उस तीर्थ पुरोहित या उनके वंशज के पास पहुंचते हैं, जहां कभी उनके दादा और परदादा ने पिंडदान किया था। इस दौरान आने वाले लोग अपने पूर्वजों के हस्ताक्षर को भी अपने माथे से लगाकर खुद को धन्य समझते हैं। कई लोग तो अपने पुरखों के हस्ताक्षर देखकर भावुक हो जाते हैं। पिंडदान के लिए आने वाले लोग अपने तीर्थ पुरोहितों या उनके वंशज के मिल जाने के बाद सहजता से उस पंडे द्वारा कर्मकांड कराए जाने के बाद पुरखों के लिए पिंडदान करते हैं। गयापाल समाज के प्रतिनिधि या स्वयं पंडा वैसे क्षेत्र में भ्रमण भी करते हैं, जहां के लोग उनके यजमान हैं। झारखंड के रजवाडीह गांव से पिंडदान के लिए गया आए अखिलेश तिवारी ने कहा कि उन्हें अपने पूर्वजों के पुरोहितों के वंशज से पिंडदान कराने में आत्मसंतुष्टि मिलती है। 
 
वह पिछले एक वर्ष से अपने पूर्वज के पंडों की खोज में थे। पिछले दिनों उन्होंने इन पोथियों की मदद से ही उन पुरोहित के वंशजों को खोज लिया, जिनसे उनके परदादा ने पिंडदान करवाए थे। इन दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के संबंध में पूछने पर एक पुजारी ने बताया कि सभी पोथियों को लाल कपड़े में बांधकर सुरक्षित रखा जाता है। बरसात से पहले सभी बहियों को धूप में रखा जाता है, ताकि नमी के कारण पोथी खराब न हों। पोथियों को सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग भी किया जाता है। एक पुजारी ने बताया कि यहां के सभी गयापाल पंडा के पास अपने यजमानों के बही-खाते हैं। आने वाले लोग भी इन बही-खाते में अपने पूर्वजों के नाम देखकर प्रसन्न मन से उसी पुरोहित से श्राद्ध करवाते हैं।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »