आज-कल की लाइफ स्टाइल एक बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। आॅफिस हो या घर कुछ लोग हर जगह भावनात्मक शोषण (इमोशनल एब्यूज) के शिकार हो जाते हैं और किसी से कुछ भी नहीं पाते। इससे पीड़ित व्यक्ति अंदर से इतना टूट जाता है कि इसके चलते वो कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को दिमागी तौर पर उबरने में बहुत समय लग जाता है। इसके अलावा इससे बड़े या बच्चे डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते है। अगर आपका पार्टनर या बच्चा इस बीमारी का शिकार हो रहें तो उनमें आए इन बदलावों को समझकर उन्हें समय पर संभाल लें।
स्कूल आॅफिस में खराब परफॉरमेंस
भावनात्मक शोषण का शिकार हुए बड़े या बच्चों का कहां पर भी ध्यान नहीं रहता है। इससे आॅफिस में ध्यान देने की बजाए बड़े काम से भागने के बहाने डूंढने लगते हैं और बच्चे पढ़ाई पर ध्यान देने की बजाए इधर-उधर गलत आदतों में टाइम बिता देते हंै। इस कारण आॅफिस या स्कूल में उनका रिजल्ट खराब हो जाता है।
खुद को नुकसान पहुंचाना
इससे पीड़ित व्यक्ति इस हद तक मानसिक रूप से प्रताड़ित हो जाता है कि वो खुद को नुकसान पहुंचाने लग जाता है। कई दिनों तक इस तरह परेशान रहने के बाद पीड़ित सिगरेट और शराब का सेवन तक शुरू कर देता है। इसके अलावा अगर वो बहुत लंबे समय से पीड़ित है तो वो
आत्महत्या की कोशिश भी कर सकता है।
आत्मविश्वास में कमी
इन सब के चलते उनका आत्मविश्वास पूरी तरह से खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में वो इतने नकारात्मक हो जाते हैं कि खुद को लाचार महसूस करने लगते है। ऐसे मामले में बच्चे बड़ों के मुकाबले किसी से आंख मिलाने से भी कतराने लगते हंै। बच्चों को इसके कारण आस-पास की चीजों को लेकर पूरी तरह विश्वास नहीं रहता।
गुस्सा करना
बड़े या बच्चे इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि उस शख्स के सामने होने पर उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते, लेकिन अकेले में गालियां निकालने लगते है। बच्चे स्कूल में लड़ाई करने लगते हैं और बड़े हर बात में नकारात्मक पक्ष ढूढ़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति में लोग आॅफिस में अपने दोस्तों पर या घर में अपनी पत्नी और अभिभावकों पर गुस्सा निकालने लगते हैं।
पीड़ित की तरफ झुकाव
इस मामले में पीड़ित व्यक्ति शोषित की तरफदारी करने लगता है और उस व्यक्ति के प्रति पीड़ित को लगाव हो जाता है। इस स्थिति में तीसरा व्यक्ति समझ नहीं पाता कि उसे इससे बाहर कैसे निकला जाए। इसके अलावा इससे पीड़ित व्यक्ति के खानपान में पर असर पड़ता है। पीड़ित ना तो टाइम पर खाना खाते हैं और ना खाने की चीजों पर ठीक से ध्यान देते हैं।
खुद को समझते हैं दोषी
बच्चे या बड़े जब इसका शिकार होते हैं तो वो समझ नहीं पाते कि इस स्थिति में क्या करें। ज्यादातर वो ऐसे जताते हैं जैसे उनके साथ कुछ हुआ ही नहीं है। कई बार तो वो इसके लिए खुद को ही दोषी समझने लगते हैं। ऐसी स्थिति में वो हमेशा डरे-डरे रहने लगते हैं। खुद को दोषी समझकर आत्मग्लानि में रहने के कारण वो मानसिक तौर पर प्रभावित हो जाते हैं।