नई दिल्ली। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पारंपरिक खेल जलीकट्टू पर लगी रोक को हटाने के लिए कानूनी बाधाओं को दूर करने की मांग की। पनीरसेल्वम के पत्र के बाद केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा की इस खेल से किसी को भी परेशानी नहीं है, सब इससे खुश है। आपको बता दें कि साल 2014 सुप्रीम कोर्ट ने पशु क्रूरता बताते हुए परंपरागत खेल पर बैन लगा दिया था।
सरकार को जल्दी लेना चाहिए फैसला
पनीरसेल्वम ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा इस खेल से बहुत लोगो की भावनाएं जुड़ी हैं। इस मसले पर केंद्र सरकार को जल्दी काम करना चाहिए। अपने पत्र में उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया है की इस खेल से तमिलनाडु का प्रसिद्ध त्यौहार पोंगल अब करीब है तो सरकार को जल्दी से कोई ठोस फैसला लेना चाहिए।
इस मसले पर चर्चा की जरूरत
वेंकैया नायडू ने कहा- कानून में संशोधन करने के लिए हमें सुझाव मिल रहे थे। हमने पहले भी शाह बानो के मामले में ऐसा किया है। उन्होंने कहा- हमें इस मसले पर विचार और चर्चा करने की जरूरत है। हम यह देखेंगे कि कोर्ट का इस बारे में क्या कहना है। नायडू ने कहा- मेरा मानना है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु का एक परंपरागत खेल है और इससे किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि एक मंत्री के तौर पर उन्हें यह बात कहनी चाहिए या नहीं।
...तो बिरयानी पर भी बैन लगा देना चाहिए
जल्लीकट्टू पर अभिनेता कमल हासन ने कहा- अगर जल्लीकट्टू जानवरों के प्रति क्रूरता है उन्हें बिरयानी खाना छोड़ देना चाहिए। अगर इस खेल पर बैन लग सकता है तो बिरयानी पर भी बैन लगा देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था बैन
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के मई में तमिलनाडु में जल्लीकट्टु के आयोजन पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र या देश में कहीं भी सांडों को जल्लीकट्टु में एक प्रदर्शन करने वाले पशु के रूप में या बैलगाड़ी दौड़ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने पशु क्रूरता बताते हुए इस परंपरागत खेल पर बैन लगा दिया था।
क्या है जलीकट्टू?
जल्लीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें।
इस खेल में विजेताओं को नकद इनाम भी देने की परंपरा है। सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें। यह जानलेवा खेल मेला तमिलनाडु के मदुरै में लगता है।
जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने-अपने बैलों की प्रैक्टिस तक करवाते हैं। जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है। बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव को देखते हुए इस खेल को बैन कर दिया था।
क्या हैं जलीकट्टू खेल के नियम?
खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल। मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है।
कितनी पुरानी है जलीकट्टू परंपरा
तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है। जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी। प्राचीन काल में महिलाएं अपने वर को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थी। जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी।
सल्ली कासू से बना जलीकट्टू
जलीकट्टू खेल का ये नाम सल्ली कासू से बना है। सल्ली का मतलब सिक्का और कासू का मतलब सींगों में बंधा हुआ। सींगों में बंधे सिक्कों को हासिल करना इस खेल का मकसद होता है। धीरे-धीरे सल्लीकासू का ये नाम जलीकट्टू हो गया।
जलीकट्टू और बुलफाइटिंग में अंतर
कई बार जलीकट्टू के इस खेल की तुलना स्पेन की बुलफाइटिंग से भी की जाती है लेकिन ये खेल स्पेन के खेल से काफी अलग है इसमें बैलों को मारा नहीं जाता और ना ही बैल को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करते हैं।