देहरादून। उत्तराखंड में जारी सियासी संकट के बीच केंद्र सरकार ने शक्ति प्ररीक्षण कराने पर सहमति जताई है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि वह कोर्ट की निगरानी में शक्ति प्ररीक्षण कराने को तैयार है। बता दें कि उत्तराखंड में अभी राष्ट्रपति शासन लागू है।
उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य में 10 मई को शक्ति परीक्षण किया जाएंगा। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि कांग्रेस के 9 बागी विधायक शक्ति परीक्षण में मतदान नहीं कर सकेंगे।
केंद्र सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी ने कहा- 'सुप्रीम कोर्ट एक पर्यवेक्षक नियुक्त करें। यह पर्यवेक्षक रिटायर्ड मुख्य चुनाव कमिशनर होना चाहिए। जब तक शक्ति नहीं होता, तब तक राष्ट्रपति शासन को हटाया जाना नहीं चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा के पटल पर विश्वास मत हासिल करने का मौका दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को यह सुझाव दिया था कि उत्तराखंड के मामले पर वो विधानसभा में शक्ति परीक्षण के बारे में विचार करें।
इससे पहले अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया था कि उन्होंने कोर्ट के सुझाव को केंद्र तक पहुंचा दिया है और सरकार इस पर गंभीरता के साथ विचार कर रही है। शुक्रवार तक इस पर ‘ठोस’ फैसला किया जाएगा।
बता दें कि 4 मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से खुद की निगरानी में शक्ति परीक्षण करने पर विचार करने के लिए कहा था। तब केंद्र ने इस पर विचार करने के लिए दो दिन का समय मांगा था।
क्या है पूरा मामला
18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के नौ विधायकों ने समर्थन किया था, जिसके बाद प्रदेश में सियासी तूफान पैदा हो गया और उसकी परिणिति 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई थी।