ओबुरावारीपल्ली। दक्षिण मध्य रेलवे के गुंटकल रेल डिविजन पर बनी देश की सबसे लंबी विद्युतीकृत रेल सुरंग इंजीनियरिंग कौशल की एक बेहतरीन मिशाल है जिसके निर्माण में नरम चट्टान और कुछ जगहों जमीन की अत्यधिक मोटाई की चुनौती पर इंजीनियरों ने नवाचारी तरीके अपनाकर विजय प्राप्त की। ओबुरावारीपल्ली-वेंकटचलम् रेल लाइन पर चेरलोपल्ली और रापुर स्टेशनों के बीच कुल 437 करोड़ रुपये की लागत से 6660 मीटर लंबी सुरंग जिस चट्टान को काटकर बनायी गयी है कि वह शालिवेंद्र हिल्स का हिस्सा है।
इसे रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने निजी कंपनी एसईडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किया है। एसईडब्ल्यू इंजीनियरिंग के भूविज्ञानी राम कुमार ने ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि शालिवेंद्र हिल्स फिलाइट चट्टान की बनी है जो मध्यम से कमजोर की श्रेणी में आती है। इसमें बीच-बीच में मिट्टी भी होती है। इसकी संरचना ऐसी है कि इसके अणु एक-दूसरे से उतने करीब से नहीं जुड़े होते जितने क्वार्जाइट जैसे ठोस चट्टानों के होते हैं।
इससे सुरंग बनाने के लिए विस्फोट करने पर चट्टान अच्छी तरह नहीं टूटती क्योंकि इसके अणु विस्फोट से पैदा कंपन को अवशोषित कर सकते हैं। कुमार ने कहा कि सुरंग निर्माण का काम जब शुरू हुआ तो 3.2 मीटर की गहराई के ड्रिल करके उनमें विस्फोटक भरकर विस्फोट किया गया। इतनी गहराई तक विस्फोट करने पर कम से कम तीन मीटर तक चट्टान के टूटने की उम्मीद थी लेकिन यहाँ मात्र 1.2 मीटर ही सुरंग बन पा रही थी। इस तरह काम समय पर पूरा होना मुश्किल था।
इसके बाद कंपनी ने चट्टान की संरचना और उस पर विस्फोटक के प्रभाव का पूरा अध्ययन करने का फैसला किया। पूरे दो महीने के अनुसंधान के बाद हम नये तरीके से विस्फोटक लगाकर एक विस्फोट में 2.2 मीटर का छेद कर पाने में सफल रहे। इसके बाद पूरा काम इसी नये तरीके से किया गया। ओबुरावारीपल्ली-वेंकटचलम रेल लाइन का निर्माण करने वाली आरवीएनएल के मुख्य परियोजना अधिकारी वी.के. रेड्डी ने बताया कि इस लाइन के निर्माण में सुरंग बनाना सबसे बड़ी चुनौती थी।
कई जगह तो सुरंग की खुदाई जमीन से मात्र 4.9 मीटर नीचे की जानी थी। इसमें पूरी जमीन धँसने का भी खतरा रहता है। इसके लिए खुदाई से पहले जमीन के ऊपर के उन हिस्सों को मजबूत किया गया जहाँ जमीन की मोटाई कम थी। सुरंग को घोड़े की नाल की शक्ल में बनाया गया है जो सबसे मजबूत ढाँचा माना जाता है। जनवरी 2016 में इसका निर्माण काम शुरू किया गया और तय समय से पहले 43 महीने में पूरा कर लिया गया।