नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने से संबंधित अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका सोमवार को खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केरल के एक संगठन की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश, 2019 के प्रावधानों को बनाये रखने के लिए तीसरी बार अध्यादेश लाया गया है। इसके जरिये तीन तलाक को अमान्य और गैर-कानूनी करार दिया गया है। इसे एक दंडनीय अपराध माना गया है, जिसके तहत तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्य से लाया गया यह अध्यादेश उन्हें उनके पतियों द्वारा तात्कालिक एवं अपरिवर्तनीय ‘तलाक-ए-बिद्दत‘ के जरिये तलाक दिए जाने को रोकेगा। इससे संबंधित विधेयक लोकसभा में पिछले साल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में सहमति न बन पाने के कारण पारित नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा था। इसके बाद शीतकालीन सत्र में सरकार ने इस विधेयक में कुछ संशोधन करके इसे लोकसभा से फिर पारित करवा लिया था, लेकिन ऊपरी सदन में यह फिर लटक गया। इसके मद्देनजर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फिर से अध्यादेश लाने का निर्णय लिया था और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा था, जिसे उन्होंने गत 21 फरवरी को मंजूरी दे दी थी।