मुंबई। आइडिया का वोडाफोन में विलय की प्रक्रिया पूरी होने के करीब है। इसी कड़ी में आइडिया सेल्युलर के बोर्ड ने 26 जून को एक्स्ट्राआॅर्डिनरी जनरल मीटिंग (ईजीएम) बुलाई है जिसमें 'आइडिया सेल्युलर लिमिटेड' का नाम बदलकर 'वोडाफोन आइडिया लिमिटेड' किए जाने को मंजूरी दी जाएगी। इसके अलावा ईजीएम में बोर्ड की उस योजना पर भी विचार किया जाएगा जिसमें नॉनकन्वर्टिबल सिक्यॉरिटीज के जरिए 15,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका इस्तेमाल कर्ज के भुगतान और बैलेंस शीट को मजबूत करने में किया जाएगा ताकि रिलायंस जियो और भारतीय एयरटेल जैसे प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला किया जा सके।
वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेल्युलर के विलय की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। विलय के बाद यह देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी बन जाएगी जिसके पास करीब 42 प्रतिशत कस्टमर मार्केट शेयर और 37 प्रतिशत रेवेन्यू मार्केट शेयर होगा। विलय के बाद नई कंपनी कंपनी को वोडाफोन आइडिया लिमिटेड के नाम से जाना जाएगा। जानकारों ने बताया था कि विलय के बाद कंपनी का नया नाम बहुत ही अच्छा है क्योंकि वोडाफोन शहरी क्षेत्रों में मजबूत है तो आइडिया सेल्युलर ग्रामीण क्षेत्रों में।
इस लिहाज से नया नाम ऐसा होना चाहिए जिसे ग्राहक आसानी से याद कर सकें। ब्रैंड कंसल्टेंट हरीश बिजूर ने कहा कि नए नाम में दोनों ही कंपनियों के नाम समाहित हैं और यह दोनों ही पक्षों के अच्छा है। उन्होंने कहा कि नई पहचान में भी पुरानी पहचान समाहित है, कुछ भी खोया नहीं है।
संयुक्त कंपनी के सीईओ होंगे बालेश शर्मा
आइडिया पहले ही इस साल अपने प्रमोटर्स और शेयरों के प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिये 6,750 करोड़ रुपए जुटा चुकी है, जबकि वोडाफोन 7,390 करोड़ रुपए लगा रही है। इसके अलावा दोनों ही कंपनियों ने अपने टावरों को अमेरिकन टावर कॉपोर्रेशन को 7,850 करोड़ रुपए में बेच दिया है। विलय के बाद अस्तित्व में आने वाली नई कंपनी के सीनियर अधिकारियों के नामों का ऐलान 2 महीने पहले ही हो चुका है। बालेश शर्मा नई कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की भूमिका निभाएंगे। विश्लेषकों का मानना है कि शर्मा और उनकी टीम के सामने बड़ी चुनौती है क्योंकि दोनों ही कंपनियां रिलायंस जियो और मौजूदा मार्केट लीडर एयरटेल से 4जी और वोल्टी सेवाओं के विस्तार के मामले में पिछड़ी हुई हैं।
कई माह से जुटा रही है फंड- आइडिया सेल्युलर ने नॉन-कन्वर्टिबल सिक्यॉरिटीज के जरिए 15,000 करोड़ रुपए जुटाने की योजना पर काम कर रही है। कंपनी पिछले कुछ महीनों से फंड जुटा रही है और विश्लेषकों के मुताबिक विलय के बाद बनने वाली नई कंपनी को और ज्यादा फंड लगाना जारी रखना होगा। मार्च के आखिर में दोनों कंपनियों पर संयुक्त कर्ज 1,14,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का था।