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जीएसटी के कारण घट सकता है ग्लूकोज बिस्किट का आकार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 12 2017 10:36AM | Updated Date: Mar 12 2017 10:36AM
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मुंबई। आम बोलचाल में चायवाला बिस्किट कहा जाने वाला ग्लूकोज बिस्किट अगर अगले वित्त वर्ष से साइज में छोटा हो जाए या इसके पैकेट का आकार घट जाए तो इसके लिए आप गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को दोष दे सकते हैं। बिस्किट मैन्युफैक्चरर्स को लग रहा है कि सस्ते ग्लूकोज बिस्किट पर महंगे क्रीम या ओट बिस्किट के बराबर टैक्स लग सकता है। इसकी वजह से इन मैन्युफैक्चरर्स को लाभ कमाने के लिए साइज घटाने पर मजबूर होना पड़ सकता है। ग्लूकोज बिस्किट्स को स्कूलों में मिडडे मील में इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
बिस्किट मैन्युफैक्चरर्स वेलफेयर असोसिएशन के प्रेसिडेंट हरेश दोशी ने कहा, यह कैटेगरी पूरी तरह से प्राइस पर टिकी हुई है। हम कॉस्ट में होने वाली कोई भी बढ़ोतरी ग्राहकों पर नहीं डाल सकते। इन मैन्युफैक्चरर्स ने गुड्स एंड सर्विसेज काउंसिल के सामने दलिल दी है कि 100 रुपए प्रति किलो से कम दाम वाले बिस्किट्स को जीरो टैक्स ब्रैकेट में रखा जाए और इस तरह से इन्हें महंगे बिस्किट्स से अलग माना जाए। मौजूदा वक्त में कम दाम वाले बिस्किट्स को सेंट्रल एक्साइज से छूट है, लेकिन इन पर राज्यों में वैल्यू एडेड टैक्स लगता है।
 
एसोसिएशन चाहता है कि इस अंतर को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स में भी कायम रखा जाए। जीएसटी को 1 जुलाई से लागू किया जाना है। दोशी ने कहा, ड्राय फ्रूट कुकीज और ओट मील को सस्ते बिस्किट्स के साथ नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस सेगमेंट में कीमतों में बड़ा इजाफा नहीं देखा गया है, भले ही इनपुट कॉस्ट में बढ़ोतरी हुई हो। इसकी वजह यह है कि इस सेगमेंट में कन्ज्यूमर्स कीमतों को लेकर बेहद संवेदनशील हैं।
 
ग्लूकोज बिस्किट्स के खुदरा दाम 1996 में 40 रुपए प्रति किलो थे और अब इसके दाम 70 रुपए प्रति किलो हैं। उन्होंने कहा, महंगे बिस्किट्स टैक्स का बोझ झेलने के लिए ज्यादा बेहतर स्थिति में होते हैं। जीएसटी में ज्यादा छूट की उम्मीद नहीं है। इसमें केवल कुछ आवश्यक वस्तुओं को ही छूट दी जाएगी। राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों की एक कमिटी टैक्स स्लैब में शामिल किए जाने वाले सामान पर काम कर रही है।
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