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मिस्त्री बनाम रतन टाटा: साल की सबसे चर्चित कारपोरेट लड़ाई

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 28 2016 6:17PM | Updated Date: Dec 28 2016 6:17PM
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नई दिल्ली। कंपनियों में स्वामित्व को लेकर लड़ाई कोई नई बात नहीं है लेकिन इस साल देश के सबसे प्रमुख व प्रतिष्ठित औद्योगिक घरानों में से एक टाटा समूह में बोर्ड रूम की लड़ाई एक तरह से स्तब्धकारी रही। समूह की बागडोर को लेकर इसके दो दिग्गजों साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच तनातनी के बीच मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया गया है और वे कानूनी लड़ाई पर उतर आए हैं। सार घटनाक्रम साल के आखिरी दो महीनों में अचानक ही हुआ।

टाटा समूह के मुख्यालय बांबे हाउस में 24 अक्‍टूबर 2016 को मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन से चलता करने की घोषणा की गई। पूर्व चेयरमैन रतन टाटा को मिस्त्री की जगह अंतरिम चेयरमैन के रूप में एक बार फिर समूह की बागडोर फिर संभलवाई दी गई। इसके साथ ही मिस्त्री व रतन टाटा खेमे में जो जुबानी जंग शुरू हुई उसकी शायद ही कल्पना रही हो। टाटा (79) दिसंबर 2012 में टाटा संस के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त हुए।

वहीं उनके उत्तराधिकारी मिस्त्री (48) को इस अप्रत्याशित घटना से पहले तक लंबी रेस का घोड़ा कहा जा रहा था। विश्लेषकों का मानना है कि टाटा समूह की यह लड़ाई व्यक्तिगत कुंठाओं और महत्वाकांक्षाओं के टकराव के साथ साथ यह भी था कि समूह की असली ताकत किसके हाथ रहेगी। वहीं बाहरी लोगों का कहना है कि यह लड़ाई पुरानी व नयी पीढी की सोच की लड़ाई भी कही जा सकती है। न्‍याय पीढी जहां परंपराओं को साथ रखते हुए चलना चाहती है

वहीं नई पीढी तात्कालिक समस्याओं के समाधान के लिए आधुनिक उपाय अपनाते हुए समय के साथ कदम मिलाने की अभिलाषा रखती है। मिस्त्री को हटाने के कारणों पर रोशनी डालते हुए रतन टाटा ने शेयरधारकों से कहा,‘टाटा संस के बोर्ड का मिस्त्री में भरोसा नहीं रहा कि वे भविष्य में समूह का नेतृत्व कर पाएंगे। इसके साथ ही टाटा ने कहा कि भविष्य में टाटा समूह की सफलता के लिए मिस्त्री को हटाना ‘बहुत जरूरी’ था।

 
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