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GDP के इसके गिरने और बढ़ने से आपकी जिंदगी पर क्या होगा असर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 1 2019 12:11PM | Updated Date: Sep 1 2019 12:11PM
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नई दिल्ली। पिछले कई दिनों से एक शब्द की खूब चर्चा लगातार अखबारों मे है वो शब्द है। जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट। आज हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर क्या बला है यह जीडीपी और किसी देश के लिए कितना मायने रखता है इसका घटना या बढ़ना। इसके गिरने से आम आदमी की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा। दरअसल, जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे जरूरी पैमाना है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) घटकर महज 5 फीसदी रह गई है, जो साढ़े छह साल का निचला स्तर है।
 
पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.8 फीसदी रही थी। GDP किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है। ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिएं। अगर साल 2011 में देश में सिर्फ़ 100 रुपये की तीन वस्तुएं बनीं तो कुल जीडीपी हुई 300 रुपये और 2017 तक आते-आते इस वस्तु का उत्पादन दो रह गया लेकिन क़ीमत हो गई 150 रुपये तो नॉमिनल जीडीपी 300 रुपये हो गया।
 
यहीं बेस ईयर का फॉर्मूला काम आता है। 2011 की कॉस्टेंट कीमत (100 रुपये) के हिसाब से वास्तविक जीडीपी हुई 200 रुपये। अब साफ़-साफ़ देखा जा सकता है कि जीडीपी में गिरावट आई है। जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के प्रभाव को विस्तार से बताते हुए एक्सपर्ट्स कहते हैं कि 2018-19 के प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये के आधार पर, वार्षिक जीडीपी 5 पर्सेंट रहने का मतलब होगा कि प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2020 में 526 रुपये बढ़ेगी।
 
अगर आसान भाषा में समझें तो कुछ इस तरह से कह सकते हैं कि जीडीपी 4 फीसदी की दर से बढ़ती है तो आमदनी में वृद्धि 421 रुपये होगी। इसका मतलब है कि विकास दर में 1 फीसदी की कमी से प्रति व्यक्ति औसत मासिक आमदनी 105 रुपये कम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो यदि वार्षिक जीडीपी दर 5 से गिरकर 4 फीसदी होती है तो प्रति माह आमदनी 105 रुपये कम होगी। यानी एक व्यक्ति को सालाना 1260 रुपये कम मिलेंगे अमीरों के मुकाबले गरीबों पर इसका अधिक असर हो सकता है।
 
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है। जीडीपी में गिरावट से रोजगार दर में भी कमी आएगी। देश में एग्रीकल्चर, इंडस्ट्री और सर्विसेज़ यानी सेवा तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत आधार पर जीडीपी दर तय होती है। ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है। अगर आसान भाषा में कहें तो मतलब साफ है कि अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुक़ाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख़ है सीएसओ विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों से समन्वय स्थापित कर आंकड़े एकत्र करता है।
 
मसलन, थोक मूल्य सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई की गणना के लिए मैन्युफैक्चरिंग, कृषि उत्पाद के आंकड़े उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय जुटाता है। इसी तरह आईआईपी के आंकड़े वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाला विभाग जुटाता है सीएसओ इन सभी आंकड़ों को इकट्ठा करता है फिर गणना कर जीडीपी के आंकड़े जारी करता है। मुख्य तौर पर आठ औद्योगिक क्षेत्रों के आंकड़े जुटाए जाते हैं। ये हैं- कृषि, खनन, मैन्युफैक्चरिंग, बिजली, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, रक्षा और अन्य सेवाएं।
 
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