नई दिल्ली। गत दिनों राजधानी दिल्ली में आयोजित ऊर्जा क्षेत्र के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन इंटरनेशनल एनर्जी फोरम (आईईएफ) के 16वें संस्करण का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) को चेताते हुए कहा कि यदि समाज के सभी वर्गों को सस्ती दरों पर ऊर्जा की सुविधा नहीं दी गई तो ओपेक देशों को ही घाटा होगा। आईईएफ में वैसे तो 72 सदस्य देश हैं, लेकिन इस बैठक में 92 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। जाहिर है तेल उत्पादक देशों को तेल खरीदार देशों के हितों का भी ख्याल रखने की हिदायत प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में दी।
हालांकि बहुत दिनों से तेल की कीमतों में जो उतार-चढ़ाव देखने में आ रहा है, उसकी एक अन्य वजह खाड़ी देशों के बीच तनाव का बढ़ना भी है। इससे इतर अमेरिका और चीन के बीच छिड़े कारोबारी युद्ध के चलते भी कच्चा तेल महंगा हो रहा है। इधर ओपेक देश व रूस मिलकर कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित कर रहे हैं। इसकी वजह से भी निर्यात प्रक्रिया में देरी हो रही है।
भारत की चिंता तेल को लेकर इसलिए भी है, क्योंकि भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश है। यहां कुल खपत का 80 फीसद से ज्यादा तेल आयात किया जाता है। भारत में तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है और जनता सरकार से ऊबने लग जाती है। जिसका खामियाजा चुनाव में उस सरकार को भुगतना होता है। हालांकि कीमतें बढ़ने से तेल की खपत भी प्रभावित होती है, जिसका खामियाजा तेल उत्पादक देशों को भुगतना होता है।
ऊर्जा की मांग में वृद्धि
भारत में अगले 25 वर्षों तक ऊर्जा की मांग में सालाना 4.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी। भारत में गैस की खपत भी 2030 तक तीन गुना हो जाएगी। पूरी दुनिया में कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की गतिशीलता का कारक माना जाता है। ऐसे में यदि तेल की कीमतों में लगातार बढ़त दर्ज की जा रही है तो इसका एक कारण यह भी है कि दुनिया में औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
बावजूद विश्व अर्थव्यस्था में तेल की कीमतें स्थिर बने रहने की उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि 2016 में सऊदी अरब और ईरान में चला आ रहा तनाव खत्म हो गया था। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान से परमाणु प्रतिबंध हटा लिए थे। इसलिए कहा जा रहा था कि अब ये दोनों देश अपना तेल बाजार में खपाने में तेजी लाएंगे। इस प्रतिस्पर्धा के चलते कच्चा तेल सस्ता मिलता रहेगा।
कच्चे तेल में गिरावट
2016 तक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के चलते भारत में इसकी कीमत पानी की एक लीटर बोतल की कीमत से भी नीचे आ गई थी। किंतु अब तेल की कीमतों में जिस तरह से उछाल आया है, उसके चलते सरकार भी मुश्किल में है। इसके अलावा देश की ईंधन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के उपायों में भी सरकार लगी है। इस मकसद पूर्ति के लिए एथेनॉल की खरीद बढ़ाई जा रही है। बहरहाल कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के लिए किसी एक कारक या कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। एक वक्त था जब कच्चे तेल की कीमतें मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती थीं।
देश में और बढ़ सकती है महंगाई
ओपेक देशों में कतर, लीबिया, सऊदी अरब, अल्जीरिया, ईरान, इराक, इंडोनेशिया, कुवैत, वेनेजुएला, संयुक्त अरब अमीरात और अंगोला शामिल हैं, किंतु इधर खाड़ी के देशों में जिस तरह से तनाव उभरा है, उसके चलते अनेक देशों ने तेल का संग्रह शुरू कर दिया है, ताकि युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने की दशा में इस तेल का उपयोग किया जा सके।
यह संग्रह तेल की कीमतों में उछाल की एक प्रमुख वजह है। कुल मिलाकर चार साल की नरमी के बाद इन दिनों जिस तरह से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल देखने में आ रहा है, उससे आने वाले दिनों में भारत को खान-पान और उपभोक्ता वस्तुओं में महंगाई का सामना करना पड़ सकता है।