नई दिल्ली। एक बेहद अहम फैसले के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकारों, यानी फन्डामेंटल राइट्स का हिस्सा करार दिया है। नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है। राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आती है। अब लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी। हालांकि आधार को योजनाओं से जोड़ने पर सुनवाई आधार बेंच करेगी।
आधार को जरूरी बनाने के कदम के बाद उठा निजता का मुद्दा
निजता के अधिकार का मुद्दा केंद्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी केन्द्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था। शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही फैसला करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे। इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के सामने इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी।
नौ सदस्यीय पीठ का गठन किया गया
हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी। संविधान पीठ के सामने विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है। न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमश: खडेक सिंह और एम पी शर्मा केसों में दी गयी व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का फैसला किया था। इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है। खडक सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था।
प्रशांत भूषण का बयान
इस मामले में याचिकाकर्ता और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से बाहर आकर बताया कि कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और कहा है कि ये अनुच्छेद 21 के तहत आता है। आधार कार्ड को लेकर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं लिया है। आधार कार्ड के संबंध में मामला 5 जजों की आधार बेंच के पास भेजा है। भूषण ने बताया कि अगर सरकार रेलवे, एयरलाइन रिजर्वेशन के लिए भी जानकारी मांगती है तो ऐसी स्थिति में नागरिक की निजता का अधिकार माना जाएगा।
क्या दलीलें दी गईं सुप्रीम कोर्ट में?
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है. केन्द्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था ,गरीब लोगों को जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिये प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।
इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुडे अनेक सवाल पूछ। इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है। उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है।