लखनऊ। गुमनामी बाबा के बक्से खुलते जा रहे हैं लेकिन मंगलवार को जब आखिरी बक्सा खुला तो उसने सभी को हैरत में डाल दिया। इस बक्से में मिली एक तस्वीर गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाषचंद्र बोस होने के दावे को पुख्ता करती नजर आई। बाबा के 26वें बक्से में नेताजी की फैमिली फोटो मिली जिसमें नेताजी माता-पिता और परिवार के लोगों के साथ हैं। इसके अलावा बक्से में पवित्र मोहन राय की लिखी चिट्ठी और टेलीग्राम्स भी मिले हैं। इससे एक बार फिर यह लगने लगा है कि नेताजी ही गुमनाम बाबा थे।
फोटो में नेताजी की फैमली के 22 लोग हैं। फोटो में ऊपर की लाइन में (बाएं से दाएं) सुधीर चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस, सुनील चंद्र और सुभाष चंद्र बोस हैं। बीच की लाइन में (बीच में बैठ हुए) नेताजी के पिता जानकी नाथ बोस, मां प्रभावती देवी और तीन बहनें हैं। फोटो में नीचे की लाइन में जानकी नाथ बोस के पोती-पोतियां हैं। इसके अलावा भी कई अन्य फैमिली फोटो मिले हैं।
गुमनामी बाबा के मकान मालिक के मुताबिक, 4 फरवरी, 1986 को नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस की बेटी ललिता यहां आई थीं। उन्होंने ही फोटो के लोगों की पहचान की थी। आजाद हिंद फौज (आईएनए) के कमांडर पबित्र मोहन राय, सुनील दास गुप्ता या सुनील कृष्ण गुप्ता के 23 जनवरी या दुर्गापूजा में आने को लेकर लेटर और टेलीग्राम मिले हैं। पवित्र मोहन राय ने एक पत्र में गुमनामी बाबा को कभी स्वामी जी तो कभी भगवन जी कहा है।
गुमनामी बाबा को ही परिवार के लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस मानते हैं। 18 अगस्त 1945 को ताईवान में हुए विमान हादसे में नेताजी की मृत्यु हो गई थी। ऐसा भारत सरकार मानती है। लेकिन उनके परिजन और करीबियों का मानना है कि उनकी मृत्यु विमान हादसे में नहीं हुई थी। गुमनामी बाबा और उनके नेताजी होने की कहानी काफी पुरानी है। कई लोगों का मानना है कि आजादी के बाद नेताजी ने बाबा का रूप धर लिया और फैजाबाद के सरयू तट पर रहने लगे।
18 सितम्बर 1985 को गुमनामी बाबा की मृत्यु के पश्चात वहीं पर उनकी समाधि भी बना दी गई। उनके समाधी पर जो जन्मतिथि लिखी है वह नेताजी की है यानी 23 जनवरी 1897। इस आधार पर पहले ही गुमनामी बाबा को नेताजी कहा जा रहा था।