नई दिल्ली। भारत लंबे समय से फ्रांस के 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने की योजना बना रहा है। भारत इस रक्षा सौदे में कीमतें कम करवाने की कोशिश कर रहा है। यह सौदा लगभग 60,000 करोड़ रुपए का होगा। अप्रैल 2015 में मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान इसकी घोषणा की गई थी। अब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर इस सौदे में बचत करना चाहते हैं।
पर्रिकर से जब पत्रकारों ने पूछा कि राफेल करार पर अब तक दस्तखत क्यों नहीं हुए, तो उन्होंने कहा, मैं एक सख्त वार्ताकार हूं। मुझे देश के लिए कुछ पैसे बचाने दें। रक्षा मंत्री ने कहा कि उन्हें पता है कि भारतीय वायुसेना को विमानों की जरूरत है। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि एक अच्छा खरीददार अपनी कमजोरी सामने नहीं रखता। वह हर वक्त अपने पत्ते अपने सीने के करीब छुपाये रखता है। कृपया देशहित में मुझसे अपने पत्ते खोलने के लिए न कहें।
पर्रिकर ने कहा कि रक्षा साजो-सामान की खरीद के लिए 70 हजार करोड़ रुपये रखे गए हैं। पिछली बार 77 हजार करोड़ आवंटन हुआ था और 66 हजार करोड़ खर्च हुए थे। इस राशि से उन रक्षा सौदों की किश्तें चुकाई जाएंगी जो पूर्व में हो चुके हैं या वित्त वर्ष के दौरान होंगे। चूंकि भुगतान टुकड़ों में करना होता है, इसलिए यह राशि पर्याप्त है। इस राफेल डील होने पर इस राशि से ही उसका आरंभिक भुगतान किया जाएगा। सौदे के बारे में उन्होंने कहा कि वे मंझे हुए खरीददार हैं और देश का पैसा बचाने में लगे हैं।
यह पूछे जाने पर यदि राफेल करार पर बात नहीं बनती है तो क्या वायुसेना को विमान मुहैया कराने को लेकर उनके पास कोई विकल्प है, इस पर उन्होंने कहा, कई बार हालात सामने आने पर उसके अनुसार ही फैसला करना होता है। रक्षा मंत्री ने कहा कि अगले वित्तीय वर्ष के बजट में राफेल करार पर दस्तखत होने की स्थिति में भुगतान का ख्याल रखा गया है। पर्रिकर ने पिछले महीने स्पष्ट किया था कि इस समझौते में अब विमान की कीमत ही एकमात्र असहमति का मु्द्दा रह गया है।