नई दिल्ली। लंदन, न्यूयॉर्क एवं सिंगापुर की तर्ज पर भारत में गांधीनगर में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केन्द्र प्राधिकरण की स्थापना को सुलभ करने वाले विधेयक को आज लोकसभा में विचार के लिए पेश किया गया जिसका करीब सभी दलों ने समर्थन किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केन्द्र प्राधिकरण विधेयक 2019 को पेश करते हुए कहा कि वर्ष 2008 में वित्त मंत्रालय में एक समिति का गठन करके देश में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के विकास पर अध्ययन कराया गया था। समिति ने कहा था कि वर्ष 2015 तक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं पर भारतीय कंपनियों द्वारा 50 अरब डॉलर खर्च किये जाएंगे और यह राशि देश के बाहर जाएगी। इसलिए भारत में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के विनियमन एवं विकास के लिए संस्थागत व्यवस्था करने की जरूरत है।
सीतारमण ने कहा कि आज देश में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं में रोजाना 40 लाख डॉलर का लेनदेन हो रहा है। यहां 13 अंतरराष्ट्रीय बैकिंग संस्थाएं हैं। अंतराष्ट्रीय बीमा के क्षेत्र में 19 कंपनियां और आईटी/आईटीईएस की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा क्षेत्र में 30 से अधिक कंपनियां कार्य कर रहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से विभिन्न वित्तीय नियामकों का एकीकरण किया गया है और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं को परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कानून के बनने से देश में काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं के विनियमन के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
कांग्रेस के कार्ति चिदंबरम ने चर्चा की शुरुआत करते हुए सरकार पर अर्थव्यवस्था में मंदी का आरोप लगाते हुए हमला किया और कहा कि अर्थव्यवस्था केवल आंकड़ों का खेल नहीं है बल्कि इसका मानवीय पहलू अधिक महत्वपूर्ण है जो प्याज के मामले से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोगों की जेब में पैसा होगा और अगर वे खर्च करेंगे तो अर्थव्यवस्था बढ़ेगी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा प्राधिकरण का विचार प्रधानमंत्री एवं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सिंगापुर यात्रा के दौरान आया था। उन्होंने इस केन्द्र को गांधीनगर में बनाये जाने का विरोध किया और इसे मुंबई में बनाने की बात कही।