नई दिल्ली। राज्यसभा में आज सदस्यों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में देश के निर्माण की नींव 2014 में रखे जाने के उल्लेख पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे देश तथा इसकी प्रगति में योगदान देने वाले महापुरूषों का अपमान करार दिया। बीजू जनता दल के प्रसन्ना आचार्य, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के टी के रंगराजन और राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा कि यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती कि देश की प्रगति में 2014 से पहले किसी ने योगदान नहीं दिया। आचार्य ने कहा कि महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण में यह कहा जाना कि राष्ट्र के निर्माण की नींव 2014 में रखी गयी सही नहीं है।
इसका मतलब है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी जैसे नेताओं ने राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि यह सरकार दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी भूल गयी। उन्होंने कहा कि यदि राष्ट्र निर्माण की यही अवधारणा है तो सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को भी सिरे से नजरंदाज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह देश और उसकी प्रगति में योगदान देने वाले महापुरूषों का अपमान है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस तरह की गलती नहीं होनी चाहिए। रंगराजन ने कहा कि यह कहना सरासर गलत है कि देश की प्रगति का सफर 2014 से शुरू हुआ।
उन्होंने कहा कि देश की प्रगति का इतिहास बहुत पुराना है। यहां तक कि मुगलों और अंग्रेजों ने देश की तरक्की के लिए काम किया भले ही इसके पीछे उनका इरादा कुछ भी हो। उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता कि प्रगति के सफर की शुरूआत 2014 में शुरू हुई। झा ने कहा कि यह कहना कि सभ्यता की शुरूआत हमसे ही हुई यह इतिहास के साथ अन्याय है। देश का इतिहास इस बात को देख रहा है और इस तरह की बात कहने वालों को इतिहास से डरना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का अभिभाषण वास्तविकता के बजाय कल्पना पर कहीं अधिक आधारित है। अभिभाषण के बिदू 105 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इससे लगता है कि संविधान से धर्मनिरपेक्षता शब्द ही गायब हो गया है।