नई दिल्ली। चीन ने नेपाल के साथ एक अहम करार किया है। करार के मुताबिक चीन ने अपने चार बंदरगाहों पर नेपाल को व्यापारिक गतिविधियां करने की अनुमति दे दी है। चीन और नेपाल के बीच हुए इस समझौते को चीन की अहम चाल के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि एशिया में सबसे बड़ी ताकत बनने की कोशिशों में लगा चीन पड़ोसी देशों खासकर भारत के आसपास के मुल्कों को अपने जाल में फंसाता जा रहा है।
बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के बाद अब उसने नेपाल को लुभाने के लिए बड़ा कदम उठाया है, उसने अपने चार बंदरगाहों को नेपाल के लिए खोल दिया है। एक बड़े घटनाक्रम के तहत चीन और नेपाल के बीच काठमांडू में हुए एक अहम समझौते के तहत अब नेपाल व्यापार के लि चीन के बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सकेगा।
गौरतलब है कि नेपाल अब तक अपना ज्यादातर व्यापार हिंदुस्तान से करता है, लेकिन 2016 से पहले जब नेपाल में मधेसी आंदोलन चल रहा था, उस समय दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़ गए। इसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री ओपी कोली ने 2016 में बीजिंग के साथ अपने संबंध आगे बढ़ाए। जिसके तहत चीन ने को नेपाल को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। इससे अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य के लिए जमीन से घिरे नेपाल की भारत पर निर्भरता कम हो जाएगी।
क्यों अहम है नेपाल-चीन के बीच ये समझौता
दोनों देशों के बीच ये समझौता काफी अहम माना जा रहा है। नेपाल अब चीन के शेनजेन, लियानयुगांग, झाजियांग और तियानजिन बंदरगाह का इस्तेमाल कर सकेगा। तियानजिन बंदरगाह नेपाल की सीमा से सबसे नजदीक बंदरगाह है, जो करीब 3,000 किमी दूर है। इसी प्रकार चीन ने लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टों (ड्राई पोर्ट्स) के इस्तेमाल करने की भी अनुमति नेपाल को दे दी। जिसके बाद अब नेपाल की भारत पर निर्भरता कम हो जाएगी। हालांकि इस पर अभी सवाल बाकी हैं, क्योंकि नेपाल के लिए चीन के पोर्ट से व्यापार करना काफी खर्चीला साबित होगा।