नई दिल्ली। दवाओं की कीमत में भारी घपलेबाजी होती है। उदाहरण के तौर पर रक्त कैंसर के उपचार से संबंधित एक इंजेक्शन की कीमत कहीं 15 हजार रुपए से अधिक है तो कहीं यह महज 800 रुपए में मिल जाता है। हाल में आई एक नई किताब में दवाओं की कीमत से संबंधित घपलेबाजी का खुलासा किया गया है।
किताब में रक्त कैंसर से पीड़ित शालिनी पाहवा का जिक्र किया गया है जिनका गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में उपचार चल रहा है। ‘हीलर्स आॅर प्रीडेटर्स’ नाम की इस किताब में कहा गया है कि कैंसर के उपचार में काम आने वाले इंजेक्शन ‘नोवार्टिस जोमेटा’ की कीमत गुड़गांव के संबंधित अस्पताल में 15,200 रुपए प्रति शॉट है। हैरानी वाला तथ्य यह है कि यही इंजेक्शन अलग ब्रांड नाम से दिल्ली के एक अस्पताल में महज 800 रुपए में उपलब्ध है।
यह किताब 41 लेखों का संग्रह है जिसे भारत के दो शीर्ष डॉक्टरों-संजय नगराल और समिरान नंदी तथा पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव केशव देसिराजू ने संपादित किया है। किताब देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार की कहानी बयां करती है। पाहवा के मामले से संबंधित लेख ‘ए कंज्यूमर्स व्यू ’ में कहा गया है कि दवा क्षेत्र से जुड़े एक व्यक्ति के अनुसार जोमेटा स्टॉकिस्टों को 13 हजार रुपये में बेचा जाता है। इस पर अस्पताल 2,200 रुपए का अपना मुनाफा कमाता है। यही इंजेक्शन दिल्ली के एक अस्पताल में दूसरे ब्रांड नाम से महज 800 रुपये में उपलब्ध है। शालिनी ने कहा कि उन्होंने सस्ते विकल्प पर जाने का फैसला किया।
किताब में दूसरे लेख ‘हॉस्पिटल प्रैक्टिसेज एंड हेल्थकेयर करप्शन’ में कहा गया है कि गंभीर जीवाणु संक्रमण के उपचार में काम आने वाली एंटीबायोटिक दवा अस्पतालों में 300 से लेकर 700 रुपए प्रतिग्राम में बेची जाती है, जबकि मरीजों को यह दवा लगभग 2,900 रुपए के एमआरपी पर बेची जाती है। दवा एक हफ्ते या 15 दिन तक एक से दो ग्राम दिन में तीन बार लेनी होती है। इस तरह इसकी औसत कीमत 87 हजार रुपये से लेकर 1,75,000 रुपए तक हो जाती है। किताब में दावा किया गया है कि इस तरह दवा पर लगभग 500 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाया जाता है।