नई दिल्ली। लोकसभा में सोमवार को जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन आॅफ चिल्ड्रेन) अमेंडमेंट बिल, 2018 [किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018] पेश किया गया जिसमें बच्चे को गोद लेने के मामलों में आदेश जारी करने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को दिया गया है ताकि ऐसे मामलों में देरी से बचा जा सके। लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने विधेयक पेश किया। इसके जरिए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 का और संशोधन किया गया है।
बिल के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि यह देखा गया है कि अदालतों में काफी वर्कलोड होने की वजह से गोद लेने संबंधी आदेश जारी करने में अदालतों से काफी देरी होती है। 20 जुलाई 2018 तक पूरे देश के विभिन्न अदालतों में दत्तक ग्रहण करने के आदेश पारित करने संबंधी 629 मामले लंबित हैं। अभी तक नियम यह है कि अगर कोई दंपति या व्यक्ति किसी बच्चे को गोद लेना चाहे तो उसे अदालत से इस मामले में अनुमति लेनी पड़ती थी।
अदालतों में पहले से ही कई अन्य मामले लंबित होते हैं जिसकी वजह से अदालतें गोद लेने संबंधी मामलों का निपटारा जल्दी नहीं कर पाती हैं। इस संशोधन के होने के बाद कोई भी परिवार जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेकर ही किसी बच्चे को गोद ले सकता है। इसकी वजह से अदालतों द्वारा गोद लेने संबंधी आदेश जारी करने में देरी की वजह से बच्चे को एक परिवार मिलने के बावजूद भी बाल देखभाल संस्थाओं में दुख के दिन काटने पड़ते हैं।
इन मुद्दों के समाधान के लिए और बच्चों के बेहतर भविष्य को ध्यान में रखते हुए गोद लेने संबंधी आदेश जारी करने के लिए अब जिला मजिस्ट्रेट को इस मामले में अधिकार दिया जा रहा है। यानी अब जिला मजिस्ट्रेट द्वारा गोद लेने की अनुमति मिलने पर संबंधित परिवार को बच्चे की कस्टडी मिल जाएगी।