नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने डाटा निगरानी के लिए सोशल मीडिया हब गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को केंद्र सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा। उच्चतम न्यायालय ने आॅनलाइन डेटा पर निगरानी करने के लिए सोशल मीडिया हब के गठन के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्णय पर सख्त रूख अपनाते हुए कहा कि यह निगरानी राज बनाने जैसा होगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर एवं न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया साथ ही इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सहयोग मांगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार नागरिकों के वाट्सएप संदेशों को टैप करना चाहती है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार का यह कदम निगरानी के नाम पर लोगों की निजता पर प्रहार है।
यह है याचिका में
याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा का कहना है कि केंद्र सरकार सोशल मीडिया की निगरानी के लिए ये कार्यवाही कर रही है, जिसके बाद वाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम व ईमेल में मौजूद हर डेटा पर सरकार की पहुंच हो जाएगी, जो कि निजता के अधिकार का यह उल्लंघन होगा, इससे हर व्यक्ति की निजी जानकारी को भी सरकार खंगाल सकेगी। इसमें जिला स्तर तक सरकार डेटा को खंगाल सकेगी।
सरकार ने जारी किए हैं टेंडर
हाल में केंद्रीय मंत्रालय के तहत काम करने वाले पीएसयू ब्रॉडकास्ट कंसल्टेंट इंडिया लि. यानी बीईसीआइएल ने एक टेंडर जारी किया है, जो कि 20 अगस्त को खुलना है। टेंडर में एक सॉफ्टवेयर की आपूर्ति के लिए निविदाएं मांगी गई हैं। सरकार इसके तहत सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं को एकत्र करेगी। अनुबंध आधार पर जिला स्तर पर काम करने वाले मीडियाकर्मियों के जरिये सरकार सोशल मीडिया की सूचनाओं को एकत्र करके देखेगी कि सरकारी योजनाओं पर लोगों का क्या रुख है।
यह चाहती है सरकार
सरकार का मानना है कि समाचारों का रुझान किस तरफ है, लोग सरकार के फैसलों से कितना प्रभावित हो रहे हैं, इससे सरकार को सही फीडबैक मिलेगा और फिर वह योजनाओं में तब्दीली करके उन्हें और ज्यादा जन उपयोगी बना सकेगी। इससे पहले 18 जून को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार किया था जिसमें सोशल मीडिया कम्यूनिकेशन हब बनाने के केंद्र सरकार के कदम पर रोक लगाने की मांग की गई थी जो डिजिटल और सोशल मीडिया की चीजों को इकट्ठा कर उसका विश्लेषण करेगा।