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पति-पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाना या निराधार आरोप लगाना मानसिक क्रूरता: अदालत

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 12 2018 1:41PM | Updated Date: Jun 12 2018 1:42PM
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बेंगलुरु। अब अपने पति या पत्नी पर निराधार आरोप लगाना या उनके चरित्र पर बिना किसी सबूत के उंगली उठाना आरोप लगाने वाले को ही उल्टा पड़ सकता है। अदालत ने पुणे के एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें तलाक की अनुमति दे दी क्योंकि उनकी पत्नी अपने पति पर लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर सकीं। 
 
अदालत की डिविजन बेंच ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा कि महिला ने आरोप लगाने से पहले उसे साबित करने के बारे में नहीं सोचा और लगाए गए आरोपों को साबित भी नहीं कर पाईं। जस्टिस विनीत कोठारी और एसबी प्रभाकर शास्त्री ने कहा, 'इस तरह के वगीर्कृत और बड़े आरोप लगाए जाने के बाद जरूरी है कि उसे साबित किया जाए। अन्यथा इस तरह के गंभीर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता माना जाएगा।
 
महिला ने लगाया था घरेलू हिंसा का आरोप कोर्ट ने पति को निर्देश दिया है कि वह अपनी पत्नी (तलाकशुदा) को निर्वाह के लिए 10 लाख रुपये दें। इसके अलावा फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में इस जोड़े के बेटे के खर्च के लिए 7,500 रुपये देने का फैसला दिया था, उसे भी बरकरार रखा गया है। गौरतलब है कि महिला ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि वह झगड़ालू प्रवृत्ति के हैं इसलिए उन्हें बेंगलुरु से पुणे ट्रांसफर कर दिया गया। महिला ने यह भी कहा था कि उनके पति ने उन्हें मारा-पीटा और घर से निकाल दिया। 
 
महिला ने यह भी कहा था कि शराब पीने, झगड़ा करने और रास्ते पर जा रहे एक व्यक्ति से झगड़ा करने वाले उनके पति को उस व्यक्ति द्वारा पीटा भी गया था। इसके अलावा महिला ने अपने पति पर अन्य महिलाओं से अवैध संबंध रखने और उनपर पैसे खर्च करने का भी आरोप लगाया था। हालांकि, महिला अपने इन आरोपों को कोर्ट के सामने साबित कर पाने में नाकाम रहीं। 
 
फैमिली कोर्ट में खारिज हुई थी पति की याचिका 
जानकारी के मुताबिक, इन दोनों की शादी 5 दिसंबर 2003 को बेलागावी में हुई थी। इनके बीच 2009 से समस्याएं शुरू हुईं। पति का आरोप है कि उनकी पत्नी एकबार अपने मायके गईं तो लौटकर नहीं आईं। महिला ने खुद के लिए और अपने बेटे के लिए मेंटनेंस खर्च दिए जाने की मांग करते हुए एक याचिका दायर कर दी। महिला ने प्रोटेक्शन आॅफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस ऐक्ट के तहत शिकायत की। इस तरह कानूनी लड़ाइयों से परेशान पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दी वह भी खारिज हो गई। हालांकि, हाई कोर्ट ने तलाक की याचिका को स्वीकार किया और पति के हक में फैसला दिया। 
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