नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी गुरुवार को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल होंगे और इस संगठन के कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। मुखर्जी ने जब से इस कार्यक्रम में शरीक होने का न्योता मंजूर किया है, तब से इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। मुखर्जी की पार्टी कांग्रेस ने उनसे आग्रह किया है कि वे पार्टी लाइन से हटकर इसमें शिरकत न करें।
गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी संघ के काडर ट्रेनिंग प्रोग्राम 'तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग' में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लेंगे। एक तरफ कांग्रेस का कहना है कि मुखर्जी के इस कार्यक्रम में शामिल होने से 'बेवजह के मतभेद' पनपेंगे, तो दूसरी ओर खुद मुखर्जी कहते रहे हैं कि वे किसी पार्टी लाइन से जुड़कर नहीं बल्कि अपने विचार रखेंगे।
अब तक के संघ की बैठकों को महात्मा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, जयप्रकाश नारायण और सेना के कमांडर इन चीफ एम करिअप्पा संबोधित कर चुके हैं। मुखर्जी के इस कार्यक्रम को लेकर कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। फर्स्टपोस्ट में राशिद किदवई ने लिखा है कि मुखर्जी का संघ की बैठक में जाना इस बात की ओर इशारा है कि आरएसएस अपना आधार और संगठन से जुड़े लोगों का दायरा बढ़ा रहा है।
किदवई ने सीएसडीएस-लोकनीति का हवाला देते हुए एक हालिया सर्वे का जिक्र किया है जिसमें कहा गया है कि 2019 के चुनाव में बीजेपी अपने दम पर बहुमत नहीं ले पाएगी। टूट जनादेश या सरकार न बन पाने की दशा में प्रणब मुखर्जी जैसे लोग 2019 के 'पावर पॉलिटिक्स' में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं।