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जमीन तय करने से पहले पूर्व फैसले पर गौर करे सुप्रीम कोर्ट

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 16 2018 9:10AM | Updated Date: May 16 2018 9:10AM
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नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि अदालत में मामला लंबित है, लेकिन कोर्ट के बाहर हिंदू संगठनों की ओर से बयानबाजी की जा रही है। हमने इस मामले में संयम बरत खुद को अनुशासित कर रखा है लेकिन हिंदू पक्ष द्वारा जजमेंट से पहले ही बयानबाजी हो रही है।
 
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से राजीव धवन ने इस्माइल फारुखी जजमेंट का हवाला देते हुए कहा उसे ध्यान में रखकर ही हाई कोर्ट ने फैसला दिया है। 1994 के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। मुस्लिम पक्षकारों का कहना है इस फैसले को दोबारा देखने के बाद ही जमीन विवाद की सुनवाई की जाए। धवन की ओर से दलील पूरी कर ली गई। इस मामले में हिंदू पक्षकारों की ओर से सीनियर ऐडवोकेट के. परासरन ने दलील शुरू की और अगली सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने 17 मई की तारीख तय कर दी है। 
 
कोर्ट के बाहर बयान से बचें पक्षकार- मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट राजीव धवन ने दलील दी कि लोगों को कोर्ट के बाहर बयान देने से बचना चाहिए। हिंदू पक्ष की ओर से लगातार दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। जजमेंट से पहले इस तरह की बयानबाजी पर रोक होनी चाहिए। क्योंकि ये कंटेंप्ट का मामला बनता है। हमने इस मामले में कंटेंप्ट के लिए अर्जी दाखिल करने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया था लेकिन अर्जी दाखिल नहीं की। 
 
उन्होंने इस्माइल फारुकी जजमेंट का हवाला दिया और कहा कि जजमेंट में कहा गया है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और इस जजमेंट के परिप्रेक्ष्य में ही हाई कोर्ट का फैसला आया है और इस पूरे मामले में इस जजमेंट का असर है। ऐसे में पहले इस मामले को एग्जामिन करने की जरूरत है और इस्लाम में मस्जिद में नमाज पढ़ना अभिन्न अंग है या नहीं, इस मुद्दे को संवैधानिक बेंच भेजा जाना चाहिए। 
 
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