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चीन का बढ़ता आसमानी दबदबा भारत के लिए खतरे का संकेत

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 9 2018 10:09AM | Updated Date: May 9 2018 10:09AM
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नई दिल्ली। करीब तीन दशक तक अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने आसमान पर राज किया है। हवा में उनके युद्ध कौशल के सामने कोई टिक नहीं सकता था। रूस और चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अब हालात बदल चुके हैं। चीन की ऐरोस्पेस इंडस्ट्री ने तकनीक के लिहाज से तेजी से प्रगति की है। खासतौर से एयरक्रॉफ्ट से दागे जानेवाले एयर-टु-एयर मिसाइल सिस्टम्स के क्षेत्र में चीन ने अपना सिक्का जमा लिया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इससे पश्चिमी देशों की वायु सेनाओं और वैश्विक आर्म्स ट्रेड के लिए परिस्थितियां बदल रही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इससे चीन के पड़ोसी भारत के लिए भी तस्वीर थोड़ी बदली है।
 
अपनी एयर फोर्स को आधुनिक बनाने में रूस सबसे आगे रहा और वह लगातार इस दिशा में काम कर रहा है। चीन वैसे तो करीब 13 ट्रिलियन डॉलर (13 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था है और अब वह अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए बड़ी सामरिक चुनौती पेश कर सकता है। स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (एसआईपीआरआई) के मुताबिक 2017 में चीन का रक्षा खर्च अमेरिकी डॉलर में 5.6 फीसदी बढ़ गया, जबकि रूस का 20 फीसदी घट गया।
 
रकढफक ने बताया कि चीन ने पिछले साल 228 अरब डॉलर और रूस ने 66.3 अरब डॉलर खर्च किया था। इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज में मिलिटरी ऐरोस्पेस के सीनियर फैलो डगलस बेरी ने कहा, 'हमारे पास पहले ऐसा माहौल था कि हम जो चाहें हवा में कर सकते थे, पर जो चीन ने किया है उसके बाद अब ऐसा संभव नहीं होगा।' इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी कमांडरों को अब पायलटों और एयरक्राफ्ट को होनेवाले संभावित नुकसान पर भी गौर करना होगा, जो 80 के दशक में उनके लिए जरूरी नहीं था।
 
अमेरिकी एयर फोर्स सबसे शक्तिशाली
अमेरिका की एयर फोर्स अब भी सबसे शक्तिशाली है। चीन ने काफी महत्वपूर्ण समय में प्रगति की है और ऐसे में अमेरिका की ग्लोबल पुलिसमैन बने रहने की इच्छा कमजोर हुई है। इस बीच, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कई महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट शुरू किए हैं, जिसके तहत रोबॉटिक्स और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी इंडस्ट्रीज में दबदबा कायम किया जा सके। यह एक तरह से विवादित दक्षिण चीन सागर और दूसरे क्षेत्रों में उसके हितों को भी मजबूत करता है।
 
दरअसल, एक समय ऐसा था जब रूस और चीन अमेरिकी एयर फोर्स की ताकत देख दंग रह गए थे और उन्हें अपनी फोर्स को मजबूत करने के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ा। चीन के लिए पहले गल्फ वॉर के दौरान वह समय आया जब अमेरिकी एयर कैंपेन ने इराकी मिलिटरी को पूरी तरह से तबाह कर दिया। रूस को 1999 में अपनी फोर्स की ताकत के बारे में सोचना पड़ा जब अमेरिका के नेतृत्व में की गई बमबारी ने सर्बिया को सैनिकों और टैंकों को अपने ही प्रांत कोसोवो से हटाने को मजबूर कर दिया।
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