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सहमति से सेक्स मामले में महिला को सजा क्यों नहीं?: सुप्रीम कोर्ट

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 9 2017 12:42PM | Updated Date: Dec 9 2017 12:42PM
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट अब व्यभिचार पर औपनिवेशिक काल के एक कानून की संवैधानिक वैधता पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है। अन्यगमन (एडल्टरी) के कृत्य में विवाहित महिला के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, कोर्ट इस सवाल पर सुनवाई करेगा। 

शीर्ष कोर्ट ने आईपीसी की एडल्टरी की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस कानून में व्याभिचार के लिए सिर्फ पुरुषों को ही सजा देने का प्रावधान है जबकि जिस महिला के साथ सहमति से यौनाचार किया गया हो, वह भी इसमें बराबर की हिस्सेदार होती है उसे दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि एक विवाहित महिला व्यभिचार के अपराध में समान रूप से भागीदार है, तो उसे भी क्यों नहीं दंडित किया जाना चाहिए। 
 
पांच साल की कैद और जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान 
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पति अपनी पत्नी और एक दूसरे व्यक्ति के बीच संसर्ग की सहमति देता है, तो यह व्यभिचार के अपराध को अमान्य कर देता है और महिला को महज एक वस्तु बना देता है, जो लैंगिक न्याय और समता के अधिकार के संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ है। 
 
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार जो कोई भी ऐसे व्यक्ति के साथ, जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और जिसका किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथुन करेगा, जो बलात्कार के अपराध की कोटि में नहीं आता है वह व्यभिचार के अपराध का दोषी है। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता में पांच साल की कैद और जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है। 
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