नई दिल्ली। मीरा चड्ढा बोरवणकर देश की इकलौती महिला आईपीएस ऑफिसर रहीं जिनके सामने फांसी की सजा दी गई। मुंबई में 26/11 हमलों के दोषी अजमल आमिर कसाब और 1993 मुंबई अटैक के दोषी याकूब मेमन को मीरा की देखरेख में ही फांसी दी गई थी। मीरा शनिवार को पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर हो गईं। इस मौके पर हम बताने जा रहे हैं कसाब और याकूब की फांसी से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें...
आईपीएस मीरा चड्ढा ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब उनसे सरकार ने इन दोनों को फांसी को सुपरवाइज करने के बारे में पूछा तो उन्होंने इसलिए ना नहीं कहा क्योंकि इससे यह माना जाता कि महिला होने की वजह से उन्होंने ऐसा किया। मीरा चड्ढा ने कहा कि कसाब को फांसी देने के बाद उनसे लोगों ने पूछा था कि क्या आप बेहोश नहीं हुई।
36 साल के करिअर में उन्होंने दो कॉन्ट्रोवर्सियल फांसी की सजा को अंजाम दिया। इस दौरान मीरा को खास सतर्कता बरतनी पड़ी। कसाब को फांसी देने के मामले में सरकार से इसे गुप्त रखने के निर्देश मिले थे। मीडिया को भी इसकी भनक न लगे, इसलिए उन्होंने अपनी गाड़ी छोड़कर, गनर की बाइक से यरवदा जेल जाने का फैसला किया।
मीरा चड्ढा ने बताया कि कसाब को फांसी देने के लिए जिन अफसरों को लगाया गया था, उन्हीं को याकूब की फांसी के दौरान भी ड्यूटी दी गई। आईपीएस ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में बताया कि कसाब की मौत के बाद उसके धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार किया गया था।
नागपुर सेंट्रल जेल में जब वह मेमन से मिलीं तो मेमन ने उनसे कहा- मैडम, चिंता मत करिए। मुझे कुछ नहीं होगा। यह बात सुनकर आईपीएस चौंक गईं थी। कसाब को 2012 में और मेमन को 2015 में फांसी दे दी गई थी।