नई दिल्ली। योग को स्कूल में अनिवार्य करने को लेकर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। याचिका में देश के सभी स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक की कक्षाओं में योगा को पढ़ाए जाने को अनिवार्य बनाए जाने की मांग की गई थी। हालांकि कोर्ट की ओर से ऐसे किसी मुद्दे पर सुनवाई से इन्कार कर दिया गया।
मामले में जस्टिस एमबी लोकुर माथुर की पीठ ने कहा गया कि हम स्कूलों को योग को अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे पर किसी तरह का आदेश नहीं दे सकते हैं। योग को स्कूलों में लागू कराने की जिम्मेदारी कोर्ट के दायरे में नहीं आती है।
कोर्ट की ओर से कहा गया कि ऐसे मुद्दे पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ऐसे मामलों में दखल नहीं देगा। कोर्ट ने वकील अश्विनी कुमार और जेसी सेठ की याचिका पर कहा कि स्कूलों क्या पढ़ाएं, क्या नहीं इसको लेकर कोर्ट कोई निर्देश कैसे दे सकता है।
स्कूलों में पढ़ाया जाएगा मौलिक अधिकार
अदालत ने कहा, ‘‘स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए यह मौलिक अधिकार नहीं है।’’ उपाध्याय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, एनसीईआरटी, एनसीटीई और सीबीएसई को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वे ‘‘जीवन, शिक्षा और समानता जैसे विभिन्न मौलिक अधिकारों की भावना को ध्यान में रखते हुए पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए ‘योग और स्वास्थ्य शिक्षा’ की मानक किताबें उपलब्ध कराए।’’ सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष 29 नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह याचिका को एक अभिवेदन की तरह ले और इस पर फैसला करे।
राष्ट्रीय योग नीति’ तय होनी चाहिए
याचिका में कहा गया था कि, कल्याणकारी राज्य में यह राज्य का कर्तव्य होता है कि वह अच्छे स्वास्थ्य के अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखना सुनिश्चित करें।’ इसमें कहा गया था कि सभी बच्चों को ‘योग और स्वास्थ्य शिक्षा’ दिए बिना या योग का प्रचार-प्रसार करने के लिए ‘राष्ट्रीय योग नीति’ तय किए बिना स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित नहीं किया जा सकता।