चेन्नई। मद्रास हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट से पतियों के साथ थोड़ी नरमी दिखाने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि पतियों को निहत्थे जवानों की तरह न समझें और न ही उन्हें मशीन समझते हुए पत्नी को गुजारे की राशि देने का आदेश दें।
कोर्ट ने कहा कि कोई भी पुरुष पति होने के साथ-साथ अपने माता-पिता की संतान भी होता है और उसे मां-बाप का भी ध्यान रखना होता है। फैमिली कोर्ट को इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और कुछ मामलों में यह ध्यान रखना चाहिए कि अपनी कमाई का दो-तिहाई हिस्सा पत्नी के गुजारे के देने के आदेश न दिए जाएं।
जस्टिस आरएमटी टीकारमन ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का जिक्र करते हुए ऐसा कहा। फैमिली कोर्ट ने 10,500 रुपए हर माह कमाने वाले एक शख्स को 7,000 रुपए अपनी पत्नी को गुजारा खर्च के रूप में देने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट से कहा कि इतनी कम कमाई में से 7000 रुपए पत्नी को देने के बाद बचे 3500 रुपयों में अपना और अपने बूढ़े पिता का खर्च चलाना किसी के लिए भी बेहद मुश्किल है।
पुरुष की दूसरी जिम्मेदारियों को भी देखें
जस्टिस टीकारमन ने कहा, ‘पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा खर्च कितना हो, इस संबंध में फैसला लेते हुए कोर्ट को पुरुष की बाकी जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।’ जज ने कहा कि इस तरह के गुजारा खर्च के आदेश की निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘ट्रायल कोर्ट को सभी हालात और पहलुओं को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाना चाहिए था, ताकि पति पर ज्यादा बोझ न पड़े।’ कोर्ट वर्द्धराजन नाम के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिनकी शादी फरवरी 2001 में हुई थी। वर्द्धराजन की पत्नी ने पति पर बेटी और उन्हें नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए चेन्नई कोर्ट में याचिका दायर कर गुजारा खर्च की मांग की थी।‘पुरुष की दूसरी जिम्मेदारियों को भी देखें’
जस्टिस टीकारमन ने कहा, ‘पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा खर्च कितना हो, इस संबंध में फैसला लेते हुए कोर्ट को पुरुष की बाकी जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।’ जज ने कहा कि इस तरह के गुजारा खर्च के आदेश की निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘ट्रायल कोर्ट को सभी हालात और पहलुओं को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाना चाहिए था, ताकि पति पर ज्यादा बोझ न पड़े।’ कोर्ट वर्द्धराजन नाम के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिनकी शादी फरवरी 2001 में हुई थी। वर्द्धराजन की पत्नी ने पति पर बेटी और उन्हें नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए चेन्नई कोर्ट में याचिका दायर कर गुजारा खर्च की मांग की थी।‘पुरुष की दूसरी जिम्मेदारियों को भी देखें’
जस्टिस टीकारमन ने कहा, ‘पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा खर्च कितना हो, इस संबंध में फैसला लेते हुए कोर्ट को पुरुष की बाकी जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।’ जज ने कहा कि इस तरह के गुजारा खर्च के आदेश की निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘ट्रायल कोर्ट को सभी हालात और पहलुओं को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाना चाहिए था, ताकि पति पर ज्यादा बोझ न पड़े।’ कोर्ट वर्द्धराजन नाम के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिनकी शादी फरवरी 2001 में हुई थी। वर्द्धराजन की पत्नी ने पति पर बेटी और उन्हें नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए चेन्नई कोर्ट में याचिका दायर कर गुजारा खर्च की मांग की थी।