नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध को आज 18 साल हो गए हैं। 26 जुलाई 1999 के दिन ही भारतीय सेना ने कारगिल में तिरंगा फहराया था, तब से हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस मौके पर प्रधानमंत्री सहित पूरे देश ने शहीदों के शौर्य को याद किया है वहीं रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ अमर जवान ज्योंति पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
शहीदों पर देश को गर्व
पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि कारगिल में हमारे सैनिकों ने हिम्मत से लड़ते हुए देश के सम्मान और इसके नागरिकों की रक्षा की। कारगिल विजय दिवस हमें हमारी सेना के शौर्य और देश के लिए उनके महान त्याग की याद दिलाता है। शहीदों पर देश को गर्व है।
सीएम योगी ने दी श्रद्धांजलि
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा - यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का है, जो हंसत-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इसके साथ ही साथ सीएम लखनऊ स्थित कारगिल पार्क पहुंचे जहां उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
कारगिल युद्ध...
1998 की सर्दियों में ही कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा जमा लिया था। 1999 की गर्मियों की शुरुआत में जब सेना को पता चला तो सेना ने उनके खिलाफ ऑपरेशन विजय चलाया। करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल में लड़ी गई इस जंग में 527 भारतीय जवान शहीद हुए थे। वह सैन्य ऑपरेशन आठ मई को शुरू हुआ और 26 जुलाई को खत्म हुआ। इस सैन्य कार्रवाई में सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए। वैसे इस लड़ाई में पाकिस्तान मानता है कि उसके करीब 357 सैनिक मारे गए थे लेकिन वास्तव में इस युद्ध में पाकिस्तान के करीब तीन हजार जवान मारे गए थे।
बाद में 11 मई से भारतीय वायुसेना भी इस जंग में शामिल हो गई थी लेकिन उसने कभी एलओसी पार नहीं की। वायुसेना के लड़ाकू विमान मिराज, मिग-21, मिग 27 और हेलीकॉप्टर ने पाकिस्तानी घुसपैठियों की कमर तोड़ दी। करीब 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर यह लड़ाई लड़ी गई। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और ताकत का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर हिन्दुस्तानी को गर्व है।
दुश्मन पर बरसे थे कारगिल युद्ध के ये हीरो
कैप्टन विक्रम बत्रा
कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा महज 22 साल के थे। उन्होंने इस युद्ध के दौरान कारगिल के पांच सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट जीतने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्हें कारगिल युद्ध का पोस्टर बॉय भी कहा जाता है। युद्ध पर जाते हुए उन्होंने कहा था, या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा पर मैं आऊंगा जरूर। उनके बारे में यह भी चर्चित है कि हर मोर्चे पर जीत के बाद वह जोर से चिल्लाते थे, ये दिल मांगे मोर। विक्रम बत्रा एक साथी ऑफिसर को बचाते हुए 7 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे। जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स के विक्रम बत्रा के बारे में कहा जाता है कि यदि वह शहीद नहीं हुए होते तो आर्मी चीफ बन चुके होते। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
कारगिल युद्ध के दौरान योगेंद्र सिंह यादव महज 19 साल के थे। 3 जुलाई 1999 की शाम भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर वापस कब्जा करने के लिए अभियान शुरू किया था। 18वें ग्रेनेडियर के सदस्य योगेंद्र यादव इस अभियान का हिस्सा थे। टाइगर हिल्स पर चढ़ाई के दौरान यादव को 15 गोलियां लगी थीं, इसके बावजूद उन्होंने दुश्मन के 5 जवान मार गिराए थे। घायल हालत में वह 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल्स पहुंचे और वहां तिरंगा लहराया। उनकी वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन मनोज पांडे
उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रहने वाले कैप्टन मनोज पांडे भारतीय सेना के गोरखा राइफल्स के सदस्य थे। कारगिल युद्ध के दौरान वह जुबर टॉप को कैप्चर करने के लिए निकली टुकड़ी को लीड कर रहे थे। उन्होंने 11 जून 1999 को बातालिक सेक्टर में दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। वह अपनी टुकड़ी को खतरनाक, पतले रास्ते से दुश्मन की मांद तक लेकर पहुंचे थे। इसके बाद दुश्मनों और उनके बीच जमकर गोलीबारी हुई। पांडे को इस दौरान कई गोलियां लगीं, घायल होने के बावजूद उन्होंने दो दुश्मनों को मार गिराया।
इसके बाद उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों के पहले बंकर का सफाया कर दिया। इसके बाद वह घायल हालत में दुश्मन के बंकरों की तरफ बढ़ते रहे और अपनी टुकड़ी की जवानों का मनोबल बढ़ाते रहे। आखिरी बंकर का सफाया करने के बाद वह गिर पड़े, उन्हें कई गोलियां लगी थीं जिसके चलते वह शहीद हो गए।
मनोज पांडे से जुड़ा एक किस्सा चर्चित है कि सेना में भर्ती के लिए हुए इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया था कि वह आर्मी क्यों जॉइन करना चाहते हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया था, क्योंकि मैं परमवीर चक्र हासिल करना चाहता हूं। इस युद्ध में उनकी बहादुरी के लिए उनकी शहादत के बाद उन्हें यह सम्मान दिया गया।
राइफलमैन संजय कुमार
राइफल मैन संजय कुमार 13 जम्मू कश्मीर राइफल में तैनात थे। संजय कुमार 4 जुलाई 1999 को पॉइंट 4875 पर पहुंचे ही थे कि उनका सामना दुश्मन से हो गया। उन्होंने हैंड टू हैंड फाइटिंग और तीन दुश्मनों को ढेर कर दिया। घबराहट में दुश्मन मौके से भाग गए और अपनी मशीन गन वहीं छोड़ गए, संजय कुमार बुरी तरह से घायल हो गए थे, उन्होंने भागते हुए दुश्मनों को उनकी ही मशीन गन से ढेर कर दिया। उनकी इस दिलेरी ने अन्य जवानों को हिम्मत दी और जवान अगले पॉइंट पर कब्जे के लिए आगे बढ़े। संजय कुमार को उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
युद्ध से जुड़ी दस बातें
1- वर्ष 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध लड़ा गया था। यह युद्ध मई से लेकर जुलाई तक युद्ध चला था।
2- इससे पहले वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। इसके बाद कारगिल का युद्ध पहला युद्ध था।
3. 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ था उस समय देश में एनडीए की सरकार थी और अटल जी उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे।
4- करगिल युद्ध की जीत की घोषणा तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजेपयी ने 14 जुलाई को की थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस की घोषणा की गई थी।
5- भारत ने एलओसी पर से पाकिस्तान के सैनिकों को खदेड़ने के लिए कारगिल सेक्टर में ऑपरेशन विजय अभियान चलाया था।
6- करगिल युद्ध में भारत के लगभग 500 जवान शहीद हुए थे। लेकिन पाक ने दावा किया था कि उसने भारत के करीब तीन हजार सैनिक को इस युद्ध में मार गिराया था।
7- ऊंचाई वाले क्षेत्र में लड़े गये सभी युद्धों में कारगिल का युद्ध इसका उदाहरण है। करगिल युद्ध पर्वतीय क्षेत्र पर लड़ा गाया था। इस तरह के युद्धों को बहुत खतरनाक माना जाता है।
8- शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले दो राष्ट्रों के बावजूद यह युद्ध हुआ था। लेकिन इस समझौते में कहा गया था दोनों देशों के बीच सीमा पर किसी तरह का सशस्त्र संघर्ष नहीं होगा।
9- भारतीय वायुसेना के अभियान सेफेद सागर ने करगिल युद्ध में बड़ी भूमिका अदा की थी।
10- करगिल युद्ध में ऐसा पहली बार हुआ था जब भारतीय वायुसेना ने 32 हजार फीट की ऊंचाई से एयर पावर का इस्तेमाल किया गया था। कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के मिग-21 और मिराज 2000 को बड़े पैमाने पर ऑपरेशन सफेद सागर में इस्तेमाल किया गया।