सुभाष कश्यप
-लोकसभा के पूर्व महासचिव और ख्यात संविधान विशेषज्ञ
-दबंग के लिए विशेष तौर पर रखे अपने विचार
भारत में राष्ट्रपति सर्वोच्च होता है। गरिमा, सम्मान वाले इस पद का महत्व तब समझ आता है, जब देश किसी ऐसी स्थिति में खड़ा होता है, जहां राष्ट्रपति को अहम फैसला लेना पड़ता है। राष्ट्रपति केवल नाम का नहीं होता, उसके पास संविधान में असीमित अधिकार होते हैं। इसलिए राष्ट्रपति को संविधान रक्षा की शपथ दिलाई जाती है। उसी संवैधानिक व्यवस्था के कारण राष्ट्रपति के लिए चुना जाने वाला व्यक्ति दलगत विचारधारा से अलग होकर राष्ट्रहित पर काम करता है। रामनाथ कोविंद से भी यही उम्मीद की जा सकती है कि वे राष्ट्रपति पद की मर्यादा वाली परंपरा के अनुसार ही काम करेंगे।
पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन कहा करते थे कि राष्ट्रपति का अधिकार इमरजेंसी लाइट की तरह होता है। जब तक सब ठीक चल रहा है, तब तक राष्ट्रपति की भूमिका केवल नाम की दिखाई देती है, लेकिन देश में जब अलग परिस्थिति पैदा होती है, तब राष्ट्रपति की मुख्य भूमिका सामने आती है। यदि किसी राष्ट्रपति ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम किया, तो वह राष्ट्रहित में नहीं होगा। इसलिए हर राष्ट्रपति दलगत राजनीति से उठकर काम करता है। देश में आम भ्रांति बनी हुई है कि राष्ट्रपति नाममात्र का होता है। अक्सर कहा जाता है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करता है। यदि वह मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होता तो सत्ताधारी दल के चुनाव में हार जाने पर अथवा संसद में विश्वास मत खो देने के बाद राष्ट्रपति उसे बनाए रखने का फैसला दे सकता है, परंतु देश का राष्ट्रपति ऐसा नहीं करता, क्योंकि उसे संविधान ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। संविधान में राष्ट्रपति के पास बहुत सारी शक्तियां होती हैं, जिनका वह सही समय पर इस्तेमाल करता है। संसद में पारित होने वाले विधेयक को कानूनी रूप लेने के लिए राष्ट्रपति के पास जाना पड़ता है। यदि राष्ट्रपति सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने वाला होता, तो किसी विधेयक को लेकर संविधान में राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प नहीं होते। राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को कानून में परिवर्तित करने के लिए उसके सभी पक्षों का अवलोकन करता है। इसके बाद वह संतुष्ट हुआ तो मंजूरी दे देता है। शंका होने पर पुनर्विचार के लिए वापस भेज देता है और उपयुक्त नहीं होने पर उसे निरस्त कर देता है। इससे साफ हो जाता है कि देश का राष्ट्रपति न किसी विचारधारा से बंधा होता है और न वह मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है। संविधान में राष्ट्रपति को ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जिससे वह राष्ट्रहित में निर्णय ले सके। राष्ट्रपति का पद जाति, धर्म से ऊपर होता है और देश के इस सर्वोच्च पद पर बैठने वाले लोग सबके होते हैं। उनका हर फैसला सबको ध्यान में रखकर लिया जाता है। भारत की इस व्यवस्था और परंपरा के तहत जिस तरह अभी तक काम हुआ है, उसी तरह से आगे भी होने की उम्मीद है।