नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव पर बढ़ते सियासी पारे के बीच विपक्षी दलों की इस मसले पर बैठक होने जा रही है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने पहले ही तय किया है कि इस मसले पर छोटी कोर समिति बनाए जाए जो सर्वसम्मत उम्मीदवार को खोजने की दिशा में आगे बढ़े। इस बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी तीन सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति का गठन किया है। इसका एजेंडा भी विभिन्न दलों के साथ संपर्क कर सर्वसम्मत उम्मीदवार की तलाश और उस पर सहमति बनाना ही है।
यहीं से बड़ा सवाल यह उठता है कि संख्याबल के लिहाज से बीजेपी के पास अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने का पहली दफा मौका है। सूत्रों के मुताबिक संघ और बीजेपी के भीतर यह आवाज भी उठ रही है कि इस मौके का लाभ उठाते हुए पार्टी की विचारधारा से जुड़े किसी शख्स को ही प्रत्याशी उतारा जाना चाहिए? इसी बात से दूसरा सवाल खड़ा होता है कि क्या ऐसे किसी प्रत्याशी के नाम पर कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष सहमत होगा?
यह भी सही है कि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के पास संख्याबल का अपेक्षित आंकड़ा नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इस खेमे के तरफ से पेश किसी उम्मीदवार पर सत्तारूढ़ खेमा राजी होगा? इन परिस्थितियों में भले ही भले ही सत्तापढ़ और विपक्ष सर्वसम्मत उम्मीदवार का राग अलापते रहें लेकिन किसी भी तरफ से पेश किसी नाम पर आम सहमति बन पाना मुश्किल प्रतीत होता है। इतिहास भी गवाह है कि अब तक के 13 राष्ट्रपति चुनावों में केवल एक बार ऐसी आम सहमति बनी है। इसी आधार पर 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए थे।
कांग्रेस ने किया केजरी से किनारा
आम आदमी पार्टी के चीफ अरविंद केजरीवाल तृणमूल चीफ ममता बनर्जी, सीपीएम प्रमुख सीताराम येचुरी और जेडीयू लीडर शरद यादव से हाल ही में मिले थे। केजरीवाल ने इन लोगों से विपक्ष के खेमे में आने की इच्छा जताई थी। केजरीवाल ने इन नेताओं से मुलाकात के दौरान बताया था कि आम आदमी पार्टी विपक्षी राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने और किसानों के मुद्दे पर एकजुट विपक्ष का साथ देने के लिए तैयार है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आप की एंट्री का कांग्रेस, एनसीपी और कुछ दूसरी पार्टियों ने कडा विरोध किया। कांग्रेस का मानना है कि आप अब खुद को बीजेपी से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही आप पार्टी के आंतरिक कलह के कारण भी उसे विपक्षी गुट से दूर रखा गया है। कांग्रेस का मानना है कि आप के चार में से तीन सांसदों ने पहले ही केजरीवाल के नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।