नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात की समीक्षा करेंगे कि ट्रिपल तलाक धर्म का मूल संबंध है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि वो इस बात की समीक्षा करेंगे कि ट्रिपल तलाक को धर्म का अभिन्न अंग माना जाएग या नहीं। इसके अलावा अलावा संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों में इसका स्थान है या नहीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बहुविवाह मुस्लिम धर्म में प्रचलित है और इस विचार करने की जरूरत नहीं है।
मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला व बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति रोहिंग्टन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इस पीठ के पांचों सदस्य अलग-अलग धर्म के हैं।
सुप्रीम कोर्ट 11 मई को सबसे पहले उन सवालों को तय करेगा जिन मुद्दों पर इस मामले की सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि पहले ही साफ कर दिया है कि वह ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के मुद्दों पर सुनवाई करेगा, यानी कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।
केंद्र सरकार दे चुकी है सवाल
केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से सवाल दिए थे जिसमें कहा गया था कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तलाके बिद्दत, हलाला और बहुविवाह की इजाजत दी जा सकती है या नहीं?, समानता का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
मामला कहां से शुरू हुआ
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एक साथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी। साथ ही मुस्लिम के बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी है। शायरा बानों ने डिजॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को द्वी विवाह से बचाने में यह विफल रहा है।
SC का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामले में सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि इन मसलों को देखने की जरूरत है क्योंकि इनमें मूल अधिकार में दखल की बात है। अदालत ने कहा कि क्या ये अनुच्छेद-14 (समानता) और 21 (जीवन के अधिकार) में दखल नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए दर्जनों जजमेंट्स को साइट किया था और बताया था कि जेंडर भेदभाव महिलाओं के संवैधानिक अधिकार में दखल है। कोर्ट ने यह जानना चाहा है कि क्या मुस्लिम महिलाएं जो जेंडर भेदभाव का शिकार होती हैं उन्हें उनके मूल अधिकार में दखल क्यों न माना जाना चाहिए।
इलाहाबाद HC बता चुका है असंवैधानिक
इलाहाबाद HC तीन तलाक को असंवैधानिक बता चुका है। इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था।