नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 'महात्मा'की उपाधि विश्वकवि गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने नहीं बल्कि महान समाज सुधारक स्वामी श्रद्धानंद ने दी थी। यह दावा एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित लेख में किया गया है। अब तक यह माना जाता रहा है कि गुरुदेव ने गांधी जी को पहली बार 'महात्मा' की उपाधि दी थी। 'जहाँ मिस्टर से गांधी बने महात्मा' लेख में कहा गया है कि हरिद्वार के निकट कनखल स्थित गुरुकुल कांगड़ी में 8 अप्रैल 1915 को गांधी जी का सम्मान समारोह आयोजित किया गया
जिसमें उन्हें 'महात्मा' की उपाधि प्रदान की गई थी। वर्ष 1902में इस गुरुकुल की स्थापना स्वामी श्रद्धानंद ने की थी जिनका वास्तविक नाम महात्मा मुंशी राम था।उनका जन्म 1856 में जालंधर के तलवान में हुआ था और निधन 1926 में हुआ था। वह दयानंद सरस्वती के अनुयाई थे। गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका में थे तभी से ही मातम मुंशी राम से उनका पत्राचार था।
उन्हें जब मुंशी राम के समाज सुधार के कार्यक्रमों की जानकारी मिली तो उन्होंने उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की। गांधी जी ने 21 अक्टूबर 1914 को दक्षिण अफ्रीका के फोनिक्स आश्रम नेटाल से उन्हें एक पत्र भी लिखा। उन्होंने पत्र में लिखा था" मैं यह पत्र लिखते हुए अपने को गुरुकुल में बैठा हुआ महसूस करता हूँ।
मैं निसंदेह इन संस्थाओं यानी गुरुकुल कांगड़ी, शांति निकेतन और सेंट स्टीफन कालेज को देखने के लिए अधीर हूं। मैं उनके संचालकों भारत के तीनों सपूतों के प्रति अपना आदर व्यक्त करता हूँ।"इसके बाद 08 फरवरी 1915 को पूना से हिन्दी में गांधी जी ने मुंशी राम को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लिखा आपके चरणों में सिर झुकाने की मेरी उमेद है इसलिए बिना निमंत्रण आने की भी मेरीफराज़ समझता हूँ। दोनों पत्र गांधी संग्रहालय में उपलब्ध हैं।