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अंबेडकर के प्रति पूर्वाग्रह रखते थे गांधी, दोनों की पहली मुलाकात भी थी बेहद तल्ख!

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 13 2017 10:10PM | Updated Date: Apr 15 2017 2:12PM
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dabangdunia.co के  संपादक पंकज मुकाती का विमर्श -

14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इंदौर के पास महू बाबा साहेब की जन्मभूमि है। यहां कई आयोजन होंगे। महात्मा गांधी और अंबेडकर दोनों ही छुआछूत के खिलाफ अभियान चला रहे थे। अंतर सिर्फ इतना था कि गांधी सवर्ण थे, और अंबेडकर दलित  समुदाय से। दोनों में कई समानता भी रही, जैसे विदेश में पढाई, कानून के जानकार, दोनों का लक्ष्य आम आदमी तक पहुंचना। अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज बुलंद करना। इतनी समानता के बाद भी  महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के बीच रिश्ते बेहद तल्ख़ रूप में जाने जाते हैं। बहुत सारे लेख, किताबें और इतिहासकार भी यही दर्शाते हैं कि गांधी और बाबा साहेब की पटरी नहीं बैठती थी। दोनों के बीच पहली मुलाकात भी बेहद तल्ख रही। हालांकि  वक्त के साथ रिश्तों में सुधार हुआ। पर दोनों के बीच कभी बेहद निकटता या भावनात्मकता वाले प्रमाण नहीं मिलते। तमाम साहित्यकारों ने ये बताने की कोशिश की है कि दोनों एक दूसरे के निकट थे। ये बहुत हद तक  गले नहीं उतरता। गांधी ने अपने जीवनकाल में बहुत कुछ लिखा। उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस यहां तक की जिन्ना के बारे में भी विस्तार से कई जगह जिक्र किया है, पर बाबा साहेब को लेकर ऐसा कुछ गांधी ने नहीं लिखा. क्यों? शायद गांधी अपने प्रतिस्पर्धी के तौर पर देखते थे बाबा साहेब को. संभव है, गांधी के मन में ये भाव रहा हो कि ये युवक कैसे दलितों के खासकर छुआछूत के मुद्दे को इतनी बेबाकी से उठा सकता है। इसका कारण, गांधी अस्पृश्यता को पूरी तरह अपना मौलिक विचार मानते रहे होंगे। एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है है कि गांधी को बाबा साहेब पर भरोसा न रहा हो। बाबा साहेब की विदेशों से ली गई डिग्री और सूट-बूट वाली छवि गांधी को ये मानने से रोकती होगी कि एक विदेशी विचार वाला व्यक्ति कैसे दलितों के मुद्दे पर लड़ाई लड़ सकेगा। महात्मा और बाबा साहेब के बीच करीब 20 सालों के सम्बन्ध रहे, सार्वजनिक रूप से सीधे-सीधे दोनों के बीच के मतभेद सामने आते रहे। कुछ राजनीति शास्त्रियों का मानना है कि दोनों की बीच मतभेद रहे पर मनभेद नहीं रहा, पर रिश्ते बहुत भावनात्मक भी नहीं रहे। 

 
दरअसल तमाम अध्ययन का सार ये निकलता है कि गांधी अंबेडकर को लेकर पूर्वाग्रह से भरे हुए थे। गांधी के मन में  ये बात गहरे बैठी हुई थी कि अंबेडकर ने विदेश से डिग्री हासिल की है। वे अंबेडकर को सूट-बूट वाला एक यूरोपियन स्टाइल का युवा मानते थे। उन्हें लगता था कि अंबेडकर एक उतावले सवर्ण समुदाय के युवा हैं, जो बदलाव के लिए बेताब है। गांधी संभवतः दो बातों को लेकर भ्र्म के शिकार हुए। पहला-उन्हें लम्बे समय तक ये भ्रम रहा कि अंबेडकर सवर्ण समुदाय से हैं। दूसरा उन्हें लगता था कि अंबेडकर विदेशी नजरिए से हिंदुस्तान देख रहे हैं, उन्हें देश की जयादा जानकारी नहीं है। ये दो कारण ही गांधी के अंबेडकर के प्रति पूर्वाग्रह के कारण बने। यही कारन रहा कि सरल और सहज व्यवहार वाले गांधी ने पहली मुलाकात में बाबा साहेब से बड़े तीखे अंदाज़ में और लगभग उनके विचार को अस्वीकार करते हुए बात की। गांधी ने अंबेडकर को यहां तक कह दिया था कि-डॉक्टर आप पैदा भी नहीं हुए थे तब से मैं अछूत आंदोलन से जुड़ा हूं। डॉक्टर कहकर भी गाँधी ने एक तरह से अंबेडकर पर तंज़ ही कसा था।
 
14 अगस्त, 1931 को दोनों की पहली मुलाक़ात बंबई के मणि भवन में हुई, गांधी मुंह से पहला ही वाक्य निकला- ह्यतो डॉक्टर, आपको इस बारे में क्या कहना है? महात्मा गांधी जैसे अनुभवी और उम्रदराज व्यक्ति  के तीखे तंज का अंबेडकर जैसे  युवा का जवाब  भी तंज के साथ ही था- आपने यहां मुझे आपकी अपनी बात सुनने के लिए बुलाया था। कृपा करके वह कहिए जो आपको कहना है। या आप चाहें तो मुझसे कोई सवाल पूछें और फिर मै जवाब दूंगा। गांधी का स्वर भी तीखा हो गया, वे बोले- मैं समझता हूं कि आपको मेरे और कांग्रेस के खिलाफ कुछ शिकायते हैं। आपको बताऊं कि अपने स्कूल के दिनों से ही मैं अस्पृश्यों की समस्या बारे में सोचता रहा हूं। तब तो आपका जन्म भी नहीं हुआ था। यह आश्चर्य की बात है कि आप जैसे लोग मेरा और कांग्रेस का विरोध करते हैं। यदि आपको अपने रुख को साबित  करने के लिए कुछ कहना है तो खुलकर कहिए। जवाब में डॉ अंबेडकर की बातों में भी  व्यंग्य था। उन्होंने कहा- महात्माजी, यह सच है कि जब आपने अछूतों की समस्या के बारे में सोचना शुरू किया तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। सभी बूढ़े और बुजुर्ग लोग हमेशा अपनी उम्र की दुहाई देते हैं। यह भी सत्य है कि आपके कारण ही कांग्रेस ने इस समस्या को मान्यता दी। लेकिन मैं आपसे कहूंगा कि कांग्रेस ने इस समस्या को औपचारिक मान्यता देने के अलावा कुछ भी नहीं किया. आप कहते हैं कि कांग्रेस ने अछूतों के उत्थान पर बीस लाख रुपये खर्च किए। मैं कहता हूं कि ये सब बेकार गए। इतने सबसे तो मैं अपने लोगों के विचारों में  में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सकता था। लेकिन इसके लिए आपको मुझसे बहुत पहले मिलना चाहिए था। देश को आज़ादी दिलाने वाले और देश को 
 
संविधान देने वाले हिंदुस्तान के दो नेताओं की मुलाकात पर अभी और गंभीर शोध की जरुरत है। निश्चित रूप से  गाँधी और अंबेडकर के रिश्तों की पड़ताल देश में सवर्ण और दलित रिश्तों पर नये ढंग से रोशनी डालेगा।

 

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