नई दिल्ली। मोदी सरकार देश में रह रहे लगभग 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेज सकती है। अखबार ने सरकार के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि ये लोग पिछले पांच से सात साल में भारत में अवैध रूप से घुसे और देश के विभिन्न इलाकों में रह रहे हैं। सरकार इनकी पहचान करने और इन्हें वापस म्यांमार भेजने की योजना पर काम कर रही है।
44 अफ़्रीकी देशों के राजनयिक प्रतिनिधियों ने भारत में अपने नागरिकों पर हो रहे हमलों पर रोष व्यक्त किया है। उन्होंने भारत सरकार पर नस्लभेदी हमले रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया। एक हफ्ते पहले दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा में हुए हमले में कम से कम एक दर्जन अफ़्रीकी छात्र घायल हुए थे।
100 साल पुराना है विवाद
जम्मू शहर के बीचोंबीच पॉश इलाके नरवाल में बने विवादित कैंप में इस वक्त हजारों की तादाद में म्यांमार से आए मुसलमान परिवार शरण लिए हुए हैं। जम्मू में आकर शरण लेने वाले रोहिंग्या मुसलमान देश की सुरक्षा पर खतरा माने जा रहे हैं। हालांकि इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों ने इसमें हवा देने का काम किया। उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे।
क्या है पूरा मामला
रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से चला आ रहा है। राखिन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं। ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था। 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। इस दौरान ब्रिटश शासकों ने बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान लाना शुरू किया। इस तरह म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।