नई दिल्ली। यूपी में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत के लिए भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को श्रेय मिल रहा हो। लेकिन पर्दे के पीछे से बीजेपी के लिए 'चाणक्य' के तौर पर काम करने वाले सुनील बंसल को भी इस जीत का उतना ही श्रेय जाता है। सुनील बंसल वो शख्स हैं, जिन्होंने अमित शाह की तरकश के सभी तीर को सफल तरीके से टारगेट तक पहुंचाया।
यूं कह लें कि जीत की असल स्क्रिप्ट उन्होंने ही लिखी। यही वजह रही कि बीजेपी यूपी में 325 सीटें जीतने में कामयाब हो सकी। प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐसा अवसर करीब 35 साल के बाद आया, जब कोई पार्टी 300 से ज्यादा सीट अपनी झोली में डाल सकी।
पर्दे के पीछे रहकर लिखी जीत की स्क्रिप्ट
बीजेपी की इस जीत के लिए सुनील बंसल ने पर्दे के पीछे जो रणनीति बनाई थी जिसकी वजह से सभी विपक्षी दल चुनावी मैदान में धराशायी हो गए। बीजेपी के लिए यह नाम काफी पुराना है, लेकिन यूपी के चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद सुनील बंसल सभी के लिए चर्चा का विषय बने हुए हैं।
अमित शाह के काफी करीबी बंसल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात से बाहर निकलकर दिल्ली की राजनीति में कदम रख रहे थे, तो उत्तर प्रदेश के लिए मोदी ने अमित शाह को जिम्मेदारी सौंपी थी। उसी समय अमित शाह राजस्थान में एबीवीपी के सदस्य सुनील बंसल को केंद्रीय राजनीति में लाए और अहम जिम्मेदारी दी। बंसल 2014 में अमित शाह के कहने पर यूपी आए थे।
लोकसभा चुनाव में ही दिखा दिया कौशल
राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ मिलकर सुनील बंसल ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में खास रणनीति के तहत काम किया और बीजेपी तथा उसकी सहयोगी पार्टियों को 80 में से 73 सीटें दिलाने में अहम रोल निभाया। एक ओर जहां यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने प्रशांत किशोर का हाथ थामा, वहीं बंसल ने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया।
युवाओं से सीधा जुड़ने के लिए बीजेपी की सोशल मीडिया टीम पर खास नजर रखने वाले सुनील ने न सिर्फ यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद नजदीकी से समझा बल्कि बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं से कार्यकर्ताओं को सीधे तौर पर जुड़ने को कहा। बंसल की इसी रणनीति का नतीजा था कि बीजेपी की यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हुई।
हालांकि उस वक्त बंसल का नाम कहीं से सामने नहीं आया था। वो सिर्फ छिपे रुस्तम की तरह अपनी चालों से विपक्ष को चारों खाने चित करते रहे। लोकसभा चुनाव में बंसल की भूमिका को नजरअंदाज करना मुश्किल था और यही वजह रही कि बंसल को बीजेपी का संयुक्त सचिव बना दिया गया, जबकि अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए।
पीके को दी मात
गौरतलब है कि एक ओर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जहां अपने चाणक्य प्रशांत किशोर के भरोसे यूपी फतह की बात कर रही थी। लेकिन इस बार पीके की रणनीति सफल नहीं हो पाई और बीजेपी के सुनील बंसल राजनीति के एक नए चाणक्य बनकर उभरे।
दिल्ली में एबीवीपी की कमान
सुनील बंसल के कौशल नेतृत्व को देखते हुए उन्हें उत्तर भारत में संगठन के कार्य को मजबूत करने का दायित्व सौंपा गया। उस वक्त दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस छात्र संगठन हावी था और एबीवीपी पर निराशा छाई हुई थी, लेकिन जल्द ही सबकुछ बदल गया। बंसल के नतृत्व में एबीवीपी ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में कामयाबी के झंडे गाड़ने शुरू कर दिए।
कौन हैं सुनील बंसल
राजस्थान की राजधानी जयपुर के नजदीक कोटपूटली में 20 सितंबर 1969 को जन्मे सुनील बंसल का राजनीतिक ग्राफ राजस्थान विश्वविद्यालय में ऊपर चढ़ा। बंसल ने विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी की ओर से महामंत्री का चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में वे कबड्डी खेला करते थे। इसी दौरान उन्होंने एबीवीपी के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर छात्रनेता के तौर पर अपनी पहचान बना ली।