24 Apr 2024, 06:58:38 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
news » National

आखिर बोलना क्यों हिंदुस्तान में अब बड़ा गुनाह है, क्यों हमें किसी से डरना चाहिए!

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 1 2017 4:02PM | Updated Date: Mar 2 2017 11:26AM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

अकेला होना जीवन में हमेशा त्रासदायी है, अकेलापन हमेशा डर और पलायन लाता है, पर अकेले होते हुए भी पहला कदम उठाना एक साहस एक शाबाशी है,गुरमोहर ने भी यही किया-मैं नहीं डरती। आखिर कोई क्यों डरे अपने ही देश में क्या डरना जरुरी है ? 
 
पंकज मुकाती 
 
गुरमोहर एक नाम। एक लड़की। एक मिसाल। एक साहस। एक तमाचा। एक उम्मीद। एक खतरा। भविष्य की दिशा। उम्मीद इस मायने में कि शायद गुरमोहर के सवाल से देश की सत्ता और उसके भक्त थोड़ा सुधरेंगे।
 
खतरा ये (जिसकी आशंका ज्यादा है) कि कही सबकी जुबान बंद करने का अभियान न चल जाए। अभी भी ये चल ही रहा है। पर संभव है देश इसे एक कानून के तौर पर ले ले। सरकारें तय कर दें कि  आपकी आज़ादी की सीमा क्या है। 
 
नोटबंदी की तरह जुबानबंदी और शब्दों का एक नया कोष आ सकता है, जिसमे साफ़ हो कि इसके बाहर बोले तो  आपकी आज़ादी के संवैधानिक  कार्ड पर भी एटीएम कार्ड की तरह ट्रांजेक्शन सीमा लगा दी जाए। क्या ये लिखना कि -मैं एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्) से नहीं डरती, गुनाह है। आखिर किसी को क्यों किसी से डरना चाहिए।
 
आखिर ऐसी नौबत क्यों आए की गुरमोहर को लिखना पड़े-मैं एबीवीपी से नहीं डरती। इसमें डराने वाला गुनाहगार है, या डरनेवाला या ये कहना वाला कि मैं नहीं डरता। पहला डरानेवाला यानी छात्र संगठन वो पूरी तरह मुक्त है, डरनेवाले तो बेचारे वैसे ही खामोश है।
 
अब तीसरा पक्ष यानी गुरमोहर जिसने कहा मैं नहीं डरती, ही इस मामले में पूरी तरह से गुनाहगार बताई गई। क्यों? क्योंकि उसने कहा मैं डरती नहीं। आखिर पिछले कुछ सालों में डराना एक देशभक्ति और डर के खिलाफ जाना देशद्रोही कैसे हो गया?
 
आखिर इतना बदलाव कैसे आया कि हम बड़े आंदोलन तो ठीक, किसी एक व्यक्ति का बोलना भी पसंद नहीं कर रहे। सोशल मीडिया पर जो बोले उसके मूंह पर पट्टी बांधते लोग घूम रहे हैं।
 
क्या ये देश एक-एक आदमी की जुबान बंद करने में लगा है। सरकारों को भी शायद ये गुंडई पसंद है, तभी तो वित्त मंत्री अरुण जेटली आज़ादी को फिर से परिभाषित करने की बात करते हैं और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजुजू कहते हैं कि उस लड़की का दिमाग कोई पॉल्यूटेड कर रहा है।
 
आखिर बिना किसी जांच के मंत्री इस कदर एक लड़की के खिलाफ कैसे खड़ा हो सकता है। इसका मतलब यह माना जाये कि एबीवीपी की हिंसा और उसका डराने का समर्थन सरकार करती है। साथ ही छुपे रूप में क्या मंत्रीजी ये कह रहे हैं कि-एबीवीपी से डरना जरुरी है। 
 
आखिर दिल्ली के रामजस कॉलेज में एबीवीपी के की हिंसा के खिलाफ एक लड़की के खिलाफ इतना बड़ा हमला क्यों। क्यों नहीं कैंपस की ये मांग वही पर सुलझा ली गई।
 
उस लड़की का ये कहना कि-मैं नहीं डरती इतना चुभा कि उससे बदला लेने को उतारू हो गए। यदि बदला लेने की कोई इच्छा नहीं थी तो क्यों 28 अप्रैल 2016 का एक पुराना विडियो ढूंढकर निकाला गया।
 
 36 पोस्टर वाले इस वीडियो में से सिर्फ 13वे नंबर का वीडियो निकालकर उसे देशद्रोही बता दिया गया. क्या कहा गुरमोहर ने इसमें। सिर्फ यही ना कि मेरे पिता कारगिल युद्ध में शहीद हो गए।
 
तब में सिर्फ दो बरस की थी। मेरी पूरी ज़िन्दगी इस बात में गुजरी की पाकिस्तान ने मेरे पिता को मारा। पर अब में समझ रही हूं पाकिस्तान ने नहीं युद्ध की सोच ने मेरे पिता की जान ली। आखिर ये कैसे देशद्रोह है।
 
क्या शान्ति की बातें करना देश द्रोह है। यदि ऐसा है तो पाकिस्तान प्रमुख नवाज़ शरीफ को गले लगाने वाले, उनकी मां को शॉल भेजने वाले और अचानक विमान का रास्ता मोड़कर नवाज़ की बेटी की शादी में शामिल होने वाले हमारे प्रधानमंत्री तो सबसे बड़े देशद्रोही हुए? उन्होंने सबसे बड़ी पहल जी जंग की खिलाफ। 
 
ऐसे में क्या ये देशभक्तों की टोली उन्हें भी ट्रोल करके धमकी देगी। जाहिर है नहीं? फिर देशभक्ति कैसे तय होगी? आदमी से? उसके पद से?  रुतबे से? शिक्षा से ? राजनीतिक धारा से? ऐसा होना नहीं चाहिए, पर हो ये ही रहा है।
 
गुरमोहर और उसके जैसे आम आदमी की आवाज़ देशद्रोह और वही बात हम कहें तो देशप्रेम। आखिर कहां जा रही है इन युवाओं की दिशा- भारत मां का अपमान नहीं सहने वाले युवा सरेआम "मां" की गाली दे रहे हैं।
 
नारी तुम श्रद्धा हो, सम्मान हो का नारा बुलंद करने वाले अपने ही देश की बेटी को सरेआम जान से मारने की धमकी दे रहे हैं, उसे बलात्कार की चेतावनी दे रहे हैं। इस चेतावनी के बाद जब गुरमोहर ने आंदोलन छोड़कर घर लौटने का फैसला लिया तो इसे जीत मानकर जश्न मनाने वालों को क्या कहें? 
 
ये जीत नहीं ये एक चिंगारी है जो गुरमोहर ने दी है. यदि सरकारों से जनता पूरी तरह खुश होती और गुरमोहर को गलत मानती तो पूरे देश में इतने बड़े पैमाने पर लोग उसके पक्ष में सामने न आते।  उम्मीद करें कि सत्ता इससे सबक लेगी। वरना एक दिन ये भक्तों की ट्रॉलिंग का नतीजा नेताओं की जुबानबंदी करवा देगा। 
 
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »