नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक और फैसले ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता बढ़ा दी है। ट्रंप के एच-1बी वीजा में कटौती के रुख से भारतीय प्रोफेशनल में हलचल मच गई है। पीएम मोदी ने कहा कि अमेरिका को संतुलित रवैया अपनाना चाहिए। स्किल्ड प्रोफेशनल्स की आवाजाही पर अमेरिका को दूर की सोच अपनाना चाहिए। गौरतलब है कि अमेरिकी अर्थव्यस्था में भारतीयों का बड़ा योगदान रहा है। एच-1बी वीजा में कटौती से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
मंगलवार को अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल से दिल्ली में मुलाकात के दौरान मोदी ने इस मुद्दे को उठाया। पीएम ने अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए कहा कि अमेरिकी प्रशासन और कांग्रेस में बदलाव के बाद द्विपक्षीय मामले में प्रतिनिधिमंडल का आना अच्छी शुरुआत है।
क्या है H-1B वीजा
H-1B वीजा एक नॉन-इमीग्रेंट वीजा है। इसके तहत अमेरिकी कंपनियां विदेशी एक्सपर्ट्स को अपने यहां रख सकती हैं। इस वीजा के तहत हजारों लोगों को अमेरिका में नौकरी मिलती है। हर साल अमेरिका 65 हजार भारतीयों को एच-1बी वीजा जारी करता है। लेकिन नए प्रावधानों से भारतीयों की नौकरियां प्रभावित होंगी।
भारत पर असर
करीब 86 प्रतिशत भारतीयों को एच-1बी वीजा कंप्यूटर और 46.5 प्रतिशत को इंजीनियरिंग पोजीशन के लिए दिया गया है। 2016 में 2.36 लाख लोगों ने इस वीजा के लिए आवेदन किया था। अमेरिका से वर्तमान में हर साल 65,000 एच1बी वीजा जारी किए जाते हैं।
H-1B वीजा में नए प्रावधान
H-1B वीजा पर नए नियमों के लिए कैलिफोर्निया की सांसद जो लॉफग्रेन ने ‘द हाई स्किल्ड इंटीग्रिटी एंड फेयरनेस एक्ट 2017’ बिल पेश किया था। 30 जनवरी को यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पेश किए गए बिल में प्रावधान है कि H-1B वीजा होल्डर्स को मिनिमम सैलरी 60 हजार डॉलर (40 लाख रु.) से दोगुनी बढ़ाकर 1.30 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रु.) देनी होगी।
अगर ये बिल पास होता है तो ज्यादा सैलरी के प्रोविजन के चलते इन्फोसिस, विप्रो, टीसीएस जैसी भारतीय कंपनियों में काम कर रहे आईटी प्रोफेशनल्स की नौकरियों पर खतरा हो सकता है। इस बिल के तहत लोएस्ट पे कैटेगरी हटा दी गई है। यह कैटेगरी 1989 से लागू थी। इसी के तहत H-1B वीजा होल्डर्स को मिनिमम सैलरी 60 हजार डॉलर देने का नियम था।