पंकज मुकाती
दस साल के "दिग्विजय" कार्यकाल के बाद सबकुछ लुटा चुकी कांग्रेस में अब भी कुछ नहीं बदला। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह रहे। उनके कार्यकाल में खिंचा अंधेरा और टूटी सड़कों ने कांग्रेस को अंधकार में धकेला और सत्ता के सारे रास्ते बंद कर दिए। 17 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस अब भी वही खड़ी दिखती है, जहां दिग्विजय उसे छोड़ गए थे।
कुछ नहीं बदला, बल्कि पार्टी लगातार कमजोर ही दिख रही है। मिस्टर बंटाढार का तमगा बीजेपी ने दिग्विजय को दिया, और आज भी जनता इसे भूली नहीं। कांग्रेस ने भी इस नाम को बदलने की कोशिश नहीं की। मध्यप्रदेश ही एक ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस थोड़े से प्रयास से सत्ता में लौट सकती है। ये एक ऐसा राज्य है, जहां सिर्फ दो राजनीतिक दल है, बीजेपी और कांग्रेस।
ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने पिछले 17 सालों में कोई चूक नहीं की। व्यापम, खनन घोटाला, डंपर काण्ड जैसे कई मामले आये। इस दौरान तीन मुख्यमंत्री भी बदले। पहले उमा भारती प्रचंड बहुमत से बीजेपी को जीताकर लाई, पर वे मुख्यमंत्री पद से हटा दी गईं। इसके बाद बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने और फिर उन्हें भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया।
शिवराज सिंह चौहान जरूर पिछले ग्यारह सालों से जमे हुए हैं। बीजेपी के अपने नेता भी पार्टी के खिलाफ रहे हैं,कैलाश विजयवर्गीय, बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, उमा भारती, प्रहलाद पटेल पार्टी के खिलाफ बोलते रहे हैं।
बावजूद इसके कांग्रेस प्रदेश में कोई जगह नहीं बना पाई। क्यों ? क्या कांग्रेस मध्यप्रदेश में खत्म हो चुकी है? क्या कांग्रेस के पास नया नेतृत्व नहीं है? क्या दिल्ली में बैठा आलाकमान मध्यप्रदेश कांग्रेस को लेकर गंभीर नहीं है? या कांग्रेस ने मान लिया की इस प्रदेश में वापस लौटना नामुमकिन है।
मध्यप्रदेश में सत्ता में लौटने के पर्याप्त मौके होने के बावजूद कांग्रेस कुछ करती नहीं दिखती। कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव एक विधायक से ज्यादा कोई वजूद नहीं दिखा सके। वे संगठन तक नहीं खड़ा कर सके। अब कांग्रेस 70 साल के कमलनाथ पर दांव लगा रही है।
कमलनाथ बड़े नेता जरूर है, पर मध्यप्रदेश में सिर्फ महाकौशल तक सीमित हैं। यदि प्रदेश की आम जनता जिसका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है तो वे कमलनाथ की फोटो तक नहीं पहचान सकेंगे। एक सीमित इलाके के नेता और बढ़ती उम्र वाले कमलनाथ क्या टूट चुकी थकी कांग्रेस को खड़ा कर पाएंगे।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया को आजमा चुकी है। हालांकि सिंधिया सिर्फ हेलकॉप्टर राजनीति करते रहे कभी उनका जुड़ाव भोपाल या राजनीतिक गलियारों में नहीं रहा। कांतिलाल भूरिया जमीन से जुड़े मेहनती नेता रहे, पर आलाकमान के सामने वे अपनी बात नहीं रख सके।
आज फिर चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस कमलनाथ के नाम के साथ खड़ी है। हर कोई ये जानता है कि कमलनाथ का नाम आना चुनाव के पहले ही घुटने टेकने जैसा है। आखिर क्यों कांग्रेस एक 70 साल के आदमी के पीछे छुपना चाहती है। राहुल गांधी एक तरफ अखिलेश से हाथ मिलाते हैं, दूसरी तरफ थके हुए चेहरों पर दांव खेल रहे हैं क्यों ?
सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित रहे कमलनाथ खुद भी भीतर से प्रदेश के राजनीति में आने को कभी उत्सुक नहीं दिखे। फिर क्या वे अनमने ढंग से जबरिया ये जिम्मेदारी ले रहे हैं, यदि ऐसा है तो ये और भी खतरनाक होगा।
कांगेस आलाकमान को चाहिए की प्रदेश के चुनावी परिदृश्य से दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और बाकि भी 65 प्लस के नेताओं को किनारे करे। नए चेहरों को फ्री हैण्ड दें। पर नया चेहरा भी अरुण यादव जैसा पुराना न हो। यादव युवा जरूर हैं, पर उनमें न जोश है न कुछ कर दिखाने का साहस।
अब भोपाल के श्यामला हिल्स में कमलनाथ का बंगला तैयार हो रहा है। कहा जा रहा है कि अब वे भोपाल में ज्यादा वक्त देंगे। अच्छा है। कमलनाथ नेता और व्यक्ति दोनों अच्छे हैं मगर उन्होंने बड़ी देर कर दी भोपाल आते-आते। ये बंगाल मुख्यमंत्री निवास के नजदीक है।
ये बंगला उन्हें दिग्विजय जब मुख्यमंत्री थे तब अलॉट हुआ था। पर इसमें कमलनाथ कम ही रहे। कमलनाथ ने भी संकेत दिए हैं कि वे भोपाल पर अब ध्यान केंद्रित करेंगे। प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होंगे। इस सक्रियता की शुरवात 22 फरवरी को विधानसभा घेराव से होगी। इस घेराव में दिग्विजयसिंह और सिंधिया भी रहेंगे।
इसके बाद कमलनाथ पार्टी विधायकों को अपने बंगले पर डिनर देंगे। कांग्रेस की ये कोशिश कितना जान भर पायेगी पार्टी में और युवा कार्यकर्ताओं को कितना जोड़ सकेंगे उम्रदराज कमलनाथ ये देखना दिलचस्प होगा। आखिर कमल की सत्ता उखाड़ने के लिए कमलनाथ को बहुत मेहनत करनी होगी।