नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुक्रवार को दिए गए एक ममताभरे फैसले ने आठ साल की बच्ची को उसकी मां से फिर मिलवा दिया। बच्ची जब सिर्फ 21 माह की थी, तब अनबन के कारण उसके माता-पिता अलग हो गए थे। तभी से वह पिता के साथ रह रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब बच्ची को वापस मां को सौंपने का आदेश देते हुए कहा कि पिता के साये में बच्ची को मां का प्यार मिल पाना संभव नहीं है। मां शिक्षक है और उसने फैमिली कोर्ट से बच्ची की कस्टडी मांगी थी, लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई।
उसने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने बच्ची मां को सौंपने और पिता को उससे बीच-बीच में मिलने देने का आदेश दिया था। सैन्य अफसर पिता ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
‘रहेगी तो समझेगी कि दूसरे छोर की घास अधिक हरी भी हो सकती है’
सुनवाई के दौरान बच्ची ने सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा नियुक्त काउंसलर से कहा कि वह अपने मौजूदा माहौल में बदलाव नहीं चाहती और पिता के साथ ही रहना चाहती है।
पिता ने दलील दी कि जब से मां ने बच्ची को छोड़ा है, तब से वही उसकी देखभाल कर रहे हैं। इस पर जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस एके सीकरी की पीठ ने कहा कि बच्ची कभी मां के साथ नहीं रही, इसलिए वह यह समझने की स्थिति में नहीं है कि दूसरे छोर की घास अधिक हरी भी हो सकती है। उसे जब मां के साथ का अनुभव होगा तो वह यह आकलन कर सकेगी कि उसकी भलाई मां के साथ रहने में है या पिता के साथ।
एक साल के लिए मां को सौंपा
पीठ ने एक साल के लिए बच्ची की कस्टडी मां को सौंप दी। पीठ ने मां से कहा कि वह बच्ची को उस स्कूल में एडमिशन दिलाएं, जहां वह पढ़ाती हैं।
मां के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि हाई कोर्ट से अनुकूल आदेश मिलने के बावजूद वह इसका फायदा नहीं ले सकी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में इस पर रोक लगा दी थी।