पंकज मुकाती
हमेशा से औरतों को राजनीति में कमतर आंकते रहें हैं, मर्द नेता। आखिर औरतों के सियासत में उतरने से इन नेताओं में इतनी घबराहट क्यों? क्यों इतने बेचैन हो जाते हैं हमारे नेता किसी भी औरत के राजनीति में सक्रिय होने पर। ऐसा क्या है जो इन मर्दों की मर्दानगी को आहत कर देता है। आखिर क्यों ये महिलाओं को बस खूबसूरती और चेहरे की नुमाइश तक ही सीमित रखना चाहते हैं।
संसद से लेकर सड़क तक सिर्फ महिलाओं पर फेयर एंड लवली बयान देकर ये क्या साबित करने की कोशिश करते हैं। क्या ये खुद के खूबसूरत ना होने की इनकी कुंठा और ईर्ष्या है, जो ये महिलाओं की खूबसूरती को लेकर बयान देकर खुद को दिमागी तौर पर काबिल बताने की कोशिश करते हैं। पर हकीकत में ये सारे मर्द ऐसे बयान देकर महिलाओं की नहीं अपनी ही मानसिक बदसूरती को उजागर करते हैं।
ताज़ा मामला जनता दल यू के शरद यादव का है। यादव का कहना है कि बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी है वोट की इज्जत। यहां तक तो ठीक है, पर शरद ऋतुु की तरह हमेशा मदमस्त रहने वाले राजनीति के इस शरद ने सारी सीमाएं तोड़ दी। बोले-बेटी की इज्जत जाए तो सिर्फ मोहल्ले और गांव में बदनामी होती है। जबकि वोट लूट जाए तो देश बदनाम होता है।
औरतों की इज्जत को लेकर उनका ये पहला और बहुत हद तक आखिरी बयान भी नहीं होगा। औरतों की खूबसूरती पर उनके बदसूरत बोल हमेशा आते रहे हैं। बीजेपी नेता विनय कटियार ने भी प्रियंका गांधी पर ऐसे ही बचकाना बयान दिया।
खुद को धर्मयुध्द के वीर और हिंदूवादी राजनीति का सबसे बड़ा नेता साबित करने में लगे रहने वाले कटियार का कहना है प्रियंका क्या है उनसे खूबसूरत कई महिलाएं स्टार प्रचारक हैं। कांग्रेस महासचिव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी एक बार अपनी ही पार्टी की नेता मीनाक्षी नटराजन को सौ टंच माल बता चुके हैं। आखिर ये भाषा क्यों ?
एक तरफ महिलाओं, लड़कियों को बराबरी के हक की घोषणाएं, उन्हें मुफ्त शिक्षा, आरक्षण जैसी तमाम योजनाएं अपने मूंह से बयान करके अपनी छाती ठोंकने वाले नेता, इन्ही आगे बढ़ती महिलाओं को देखकर छाती पीटने क्यों लगते हैं ? कथनी और करनी का ये विरोधाभास सिर्फ राजनीति में ही नहीं है, पर राजनीति में महिलाओं का रास्ता सबसे ज्यादा रोका जाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा तो उन्हें अपनी ही पार्टी में सफाई देनी पड़ी। क्यों? क्या किसी महिला को अच्छे काम पर दुर्गा कहना अपराध है, जबकि वही धर्मपंथी, हिंदूवादी लोग देवी दुर्गा के नाम से अपनी शाखायें लगाते है, दुर्गा वाहिनी बनाते हैं। ये कोई एक दल या एक नेता की बीमारी नहीं है।
शरद यादव ने तो संसद में भी अपना रवैया वही रखा। एक सांसद को लेकर वे बोले दक्षिण भारत की महिलाएं सांवली तो ज़रूर होती हैं, लेकिन उनका शरीर खूबसूरत होता है, उनकी त्वचा सुंदर होती है, वे नाचना भी जानती हैं। लेकिन भारत के लोग गोरी चमड़ी के आगे सरेंडर कर देते हैं।
यहां तो सफेद रंगत देखकर लोग दंग रह जाते हैं। शादी के विज्ञापनों में भी लिखा रहता है, गोरी लड़की चाहिए, ये सब कहते हुए उनकी भाव भंगिमा ही उनके पूरे स्वरुप को बता रही थी। शरद यादव ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करते हुए कहा था कि यदि ये बिल पारित हो गया तो मैं ज़हर खा लूंगा।
शरद यादव ने ये भी कहा था कि इस बिल से सिर्फ़ पर कटी औरतों को फ़ायदा पहुंचेगा। स्मृति ईरानी पर वे बोले थे आप चुप रहिये- मैं जानता हूं आप क्या हैं। इस देश ने इंदिरा गांधी, जयललिता, ममता बनर्जी, सुषमा स्वराज, चन्दा कोचर, इंदिरा नुई, बछेंद्री पाल, कल्पना चावला, जैसी मजबूत औरतों को देखा हैं।
जिन्होंने मर्दों के सामने अपनी ताकत, बुद्धि का लौहा मनवाया। आखिर ये फेयर एंड लवली वाले बयानों से और जिस्म से अलग औरतों को दिमागी रूप से कब देखेंगे हमारे नेता।