नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री पर मामला गंभीर होता जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मोदी की डिग्री पर सवाल उठाये थे। सूचना के अधिकार के तहत केजरीवाल ने डिग्री सार्वजानिक करने की मांग की थी। पर अभी तक देश वो डिग्री नहीं देख पाया।
आखिर क्यों डिग्री दिखाने के बजाय इसे कानूनी मामले में उलझाया जा रहा है। क्यों नहीं पारदर्शिता और देश को स्वच्छ और साफ़ करने निकले मोदी अपनी डिग्री खुद सार्वजानिक कर देते। मोदी को अपनी छवि के अनुरूप 56 इंच का सीना ठोंककर डिग्री जनता को दिखाना चाहिए।
देश को अपने मुखिया की डिग्री जानने का पूरा हक़ है। सरकार और मोदी की तरफ से कोई जवाब न आना मामले को शक के घेरे में बदलता है। डिग्री मामले में सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश का पालन करने की बजाय दिल्ली यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।
डीयू ने आयोग के निर्देश को चुनौती देती हुए कहा है कि एक छात्र की डिग्री उसके निजी दस्तावेज़ होते हैं, लिहाज़ा उनका ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कोई भी डिग्री छात्र और यूनिवर्सिटी के बीच का मामला है। इस पर केजरीवाल ने एक बार फिर कहा है कि मोदी जी की डिग्री फर्जी है और वे जानबूझकर मामले को उलझा रहे हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय को कोर्ट से गुहार इसलिए लगानी पड़ी है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के डिग्री विवाद में पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) श्रीधर आयार्युलू ने 1978 के डीयू रेकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दे दिया था। विश्वविद्यालय का दावा है कि इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह परीक्षा पास की थी।
इस मामले में लगाई गई आरटीआई पर सुनवाई करते हुए सीआईसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को वर्ष 1978 में बीए डिग्री पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के रेकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। वहीं 1978 के रिकॉर्ड की पड़ताल की बजाय डीयू जाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर हमला बोला है।
उन्होंने कहा है, 'मोदी जी की डिग्री पक्की फ़र्ज़ी है। वह इसे छुपाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं'। बहरहाल डीयू ने हाई कोर्ट में जिस दलील का हवाला दिया है, उसे केंद्रीय सूचना आयोग पहले ही खारिजकर पड़ताल का निर्देश दे चुका है। आयोग ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया था कि यह थर्ड पार्टी की व्यक्तिगत सूचना है।
आयोग ने कहा कि इस दलील में कोई दम या कानूनी पक्ष नजर नहीं आता है। सीआईसी ने विश्वविद्यालय को 1978 में बीए उत्तीर्ण होने वाले सभी विद्यार्थियों के रोल नंबर, नाम, पिता का नाम, प्राप्तांक समेत सभी सूचनाएं देखने देने और इनसे संबंधित रजिस्ट्रर की संबंधित पेज का प्रमाणित कॉपी मुफ्त में उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।