नई दिल्ली। 20 साल पुराने हिंदुत्व मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने धर्म जाति के नाम पर वोट मांगने को गलत बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा की व्याख्या करते हुए कहा है कि चुनाव में उम्मीदवार या पार्टी धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट नहीं मांग सकते।
सुप्रीम कोर्ट की बात सदस्यीय संविधान बेंच ने फैसला किया है कि चुनाव में कोई धर्म काम इस्तेमाल नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि 'कोई उम्मीदवार अपने या विरोधी उम्मीदवार के धर्म, जाति या भाषा काम इस्तेमाल चुनाव में नहीं कर सकता है।
चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है, इसमें धर्म का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का भगवान से संबंध निजी मामला है, इसमें राज्य कार्यकारिणी दखल नहीं होना चाहिए।
चुनाव में धर्म का इस्तेमाल नहीं
सुनवाई के दौरान सात जजों में से चार जजों ने कहा कि चुनाव में धर्म का इस्तेमाल नहीं हो सकता। लेकिन तीन जजों ने कहा कि धर्म क का इस्तेमाल चुनाव में किया जा सकता है।
20 साल से कानून क्यों नहीं'
इससे पहले भी कोर्ट ने इस मामले में संसद पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि 20 साल से संसद ने इस बारे में कोई कानून क्यों नहीं बनाया। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि इतने वक्त से मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो क्या ये इंतजार हो रहा था कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करे जैसे यौन शौषण केस में हुआ था।