नई दिल्ली। हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शनिवार को उस वक्त एक बार फिर तकरार सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्चिस टी. एस. ठाकुर ने जजों की नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार के उदासीन रवैये की आलोचना की।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के दो दिवसीय अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर देशभर की अदालतों में जजों की कमी को लेकर केंद्र सरकार को खरी-खरी सुनाई। उन्होंने कहा, देशभर की हाईकोर्टों में 500 पद खाली हैं और इनकी नियुक्ति हो जाती तो वे आज काम कर रहे होते।
उन्होंने कहा कि कोर्ट रूम खाली हैं और उनमें जज जा नहीं रहे हैं। इस सम्मेलन में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह भी मौजूद थे।
जस्टिस ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद जज किसी भी न्यायाधिकरण का प्रमुख बनने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि सरकार उन्हें न्यूनतम सुविधा के तौर पर एक आवास तक मुहैया नहीं करवा पा रही है।
उन्होंने कहा, कोर्ट रूम हैं, लेकिन उनमें जज नहीं। चीफ जस्टिस ने कहा कि नए न्यायाधिकरण बनने से न्यायपालिका को कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वे कोर्टों का बोझ कम करते हैं, लेकिन इनमें मूलभूत सुविधाएं तो होनी ही चाहिए।
कानून मंत्री ने किया पलटवार
हालांकि इस अवसर पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चीफ जस्टिस ठाकुर की टिप्पणी से अपनी असहमति जताई। कानून मंत्री ने कहा कि वह चीफ जस्टिस की बात से सहमत नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार नियुक्ति करने और सुविधा मुहैया करवाने का भरपूर प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त सभी जजों को एक ही आकार का आवास देना संभव नहीं है।
प्रसाद ने कहा कि इस साल कुल 120 जजों की नियुक्ति हुई है जो अब तक का दूसरा सर्वोच्च नियुक्ति का रिकॉर्ड है। जिला कोर्टों में 5000 पद खाली हैं, लेकिन इन्हें भरने में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
गौरतलब है कि हाई कोर्ट और न्यायाधिकरणों में जजों को बेहतर सुविधा देने के मामले में पहले भी देश की सबसे बड़ी कोर्ट अपनी चिंता जाहिर कर चुकी है।