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UP चुनाव: नोटबंदी से बीजेपी को फायदा- 79 फीसदी मोदी के साथ

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 18 2016 2:44PM | Updated Date: Nov 18 2016 2:45PM
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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक कहे जा रहे 500-1000 के नोटों को बंद करने के फैसले का उनके राजनीतिक विरोधियों पर बुरा असर पड़ने जा रहा है। इस नोटबंदी का अगले साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। जानकारों का मानना है कि कालेधन पर रोक लगाने की इस पहल का भाजपा को फायदा होगा।
 
भाजपा को फायदा पहुंचने की बात तब की जा रही है, जब पूरे देश में लोगों को अपनी जरूरतभर के रुपए निकालने और पुराने नोट बदलने के लिए बैंकों और एटीएम की लाइनों में खड़ा होना पड़ रहा है। लाइनों में लगने को लेकर लोगों में गुस्सा भी है, हालांकि इससे कुछ  समय के लिए भाजपा के समर्थन को नुकसान पहुंचने की भी बात कही जा रही है।
 
सर्वे: 79 फीसदी मोदी के साथ, 3 फीसदी विरोधी
8 नवंबर को 500 और एक हजार रुप, के पुराने नोट बंद करने के फैसले के बाद नोटबंदी पर कराए गए एक सर्वे में देश की 79 फीसदी जनता ने नोटबंदी के मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन किया है। सर्वे में यह सामने आया है कि देश में नोटबंदी के कारण हो रहीं अत्यधिक असुविधाओं और उत्पादकता में कमी के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी का लोगों ने समर्थन किया है। नागरिक संविद मंच लोकल सर्किल्स के सर्वेक्षण के अनुसार, 79 प्रतिशत लोग नोटबंदी का समर्थन करते हुए दिखे, जबकि केवल तीन प्रतिशत लोगों ने इसका विरोध किया।
 
वहीं, अन्य 18 प्रतिशत लोगों ने इस पहल का समर्थन करते हुए इससे होने वाली असुविधा और परेशानियों पर नाराजगी जताई। बता दें, यह सर्वे देश के 200 शहरों में किया गया था। इस सर्वे में करीब 10,000 नागरिकों को शामिल किया गया था।
 
सभी पार्टियों को होगा नुकसान
एनडीए के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए उप्र चुनाव में जीत भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी गणना साफ है कि इससे बाकी सब को नुकसान होगा, लेकिन भाजपा और भी मजबूत होकर निकलेगी।
 
राजनीतिक पार्टियों को फिलहाल पैसों की दिक्कत भले ही हो रही हो, लेकिन इसका लंबे समय तक असर होगा... ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। व्यापारी वर्ग अपने फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियों को धन से मदद करते हैं और चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक पार्टियां उनके समर्थन में नीतियां बनाती हैं। 
 
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