श्रीनगर। श्रीनगर से पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद के बीच चलने वाली साप्ताहिक कारवां-ए-अमन बस को सीमा पार कुछ राजनीतिक गतिविधियों के कारण स्थगित कर दिया गया। आधिकारिक सूत्रों ने यहां यूनीवार्ता को बताया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में यौम-ए-तहसीस के कारण बस को नहीं चलाया जाएगा। पाकिस्तानी अधिकारियों की ओर से इस बारे में सूचित किए जाने के बाद इस बस से यात्रा करने वाले सभी यात्रियों को बस के स्थगित होने के बारे में जानकारी दे दी गई है।
कश्मीर घाटी में गत 108 दिनों से जारी कर्फ्यू, पाबंदियों और हड़ताल के बावजूद यह बस सेवा गत 11 और 18 जुलाई को छोड़ कर सुचारू रूप से चलती रही है। गत आठ जुलाई को अनंतनाग के कोकरनाग में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी समेत तीन आतंकवादियों के मारे जाने के अगले दिन भड़की हिंसा और सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 86 लोग मारे गए हैं और नौ हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं।
अलगाववादियों की हड़ताल के कारण सुरक्षा कारणों से 11 और 18 जुलाई को बस सेवा स्थगित कर दी गई थी। गत चार जुलाई और 12 सितंबर को ईद पर्व के कारण बस सेवा स्थगित की गई थी। बस सेवा पर हालांकि गत 18 सितंबर को उरी के सेना ब्रिगेड मुख्यालय पर हुए फिदायीन हमले का भी कोई असर नहीं पड़ा। इस हमले में 19 सैनिक शहीद हो गए और 20 अन्य घायल हो गए। जवाबी कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकवादी भी मारे गए।
इस हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सीमित सैन्य कार्रवाई की थी। हालांकि पाकिस्तान ने ऐसी किसी कार्रवाई से इन्कार करते हुए दावा किया कि सीमा पार से हुई गोलीबारी में उसके दो सैनिक मारे गए। घाटी में उपद्रव के दौरान यह बस श्रीनगर से तड़के नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की सबसे आखिरी चौकी कमान पोस्ट के लिए रवाना होती है। ऐसा अलगाववादियों के हड़ताल के दौरान किसी हिंसक घटना से बचने के लिए किया जाता है।
इसी प्रकार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से आने वाले लोग पथराव से बचने के लिए देर रात को उरी में रुककर सफर का इंतजार करते हैं। बस सेवा को दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के बड़े उपाय के रूप में गत सात अप्रैल 2005 को शुरू किया गया था। बस सेवा ने 1947 में विभाजन के समय अलग हुए परिवारों को एक-दूसरे से मिलाने में अहम भूमिका अदा की है।
दोनों पड़ोसी देशों ने इसे दोनों ओर के राज्यों का मामला मानते हुए लोगों की यात्रा को अंतरराष्ट्रीय पासपोर्ट के बजाए ट्रेवेल परमिट के जरिए करने की इजाजत दी है। हालांकि दोनों ओर की खुफिया एजेंसिंयों द्वारा नामों को मंजूरी दिये जाने के बाद ही लोगों को यात्रा की इजाजत दी जाती है।