नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के आरक्षण से क्रीमी लेयर को हटाने के 2018 के आदेश पर पुनर्विचार के लिए वृहद पीठ को सौंपने का उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है। आरक्षण से संबंधित अन्य जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी। एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला देते वक्त इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि एसी/एसटी समुदायों को क्रीमी लेयर की अवधारणा से बाहर रखा गया है, जबकि यह प्रावधान भी पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2008 में इंद्रा साहनी फैसले में किया था।
वेणुगोपाल ने इस दलील के साथ सर्वोच्च अदालत से आग्रह किया कि वह इस मामले में 2018 में आए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास पुनर्विचार के लिए भेजे। एटर्नी जनरल की इस दलील को वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि जरनैल सिंह मामले में फैसला बिल्कुल स्पष्ट है और एक ही मुद्दे पर बार-बार बहस नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, ‘‘यह सालाना कार्यक्रम नहीं हो सकता है। एससी/एसटी समुदायों में क्रीमी लेयर की अवधारणा पर 2018 का फैसला बिल्कुल स्पष्ट है। इसे फिर से नहीं खोला जा सकता है।’’ शंकरनारायणन राजस्थान में एसी/एसटी समुदायों के गरीब एवं पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था समता आंदोलन समिति का पक्ष रख रहे थे।