नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज करते हुए आदेश दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी नहीं दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को दी गई उम्रकैद की सजा का बरकरार रखा है। केंद्र सरकार ने राजीव गांधी के हत्यारों को उम्रकैद की बजाए फांसी देने के लिए क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल किया था, जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।
राजीव गांधी की हत्या में शामिल तीन लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर राजीव गांधी के हत्यारों को माफी देकर जेल से रिहा किए जाने का विरोध किया था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से राजीव गांधी के तीन हत्यारों की फांसी उम्रकैद में तब्दील होने के बाद तमिलनाडु सरकार ने राजीव के सभी सातों हत्यारों संथन, श्रीहरन उर्फ मुरुगुन, पेरारिवलन, नलिनी, रार्बट पायस, रविचंद्रन और जयकुमार को रिहा करने की घोषणा की थी।
केंद्र का कहना है कि राजीव गांधी हत्याकांड की जांच और अभियोजन सीबीआई ने किया था इसलिए इस मामले में राज्य सरकार दोषियों को माफी देकर रिहा नहीं कर सकती है। दोषियों की रिहाई में कानून के मुताबिक केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है।
इस मामले में कोर्ट ने कानून के सात प्रश्न विचार के लिए संविधानपीठ को भेजे थे। मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मामले पर सुनवाई शुरू की।
सुनवाई शुरू होने के समय ही तमिलनाडु की ओर से पेश वकील राकेश द्विवेदी ने केंद्र की याचिका पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका नहीं दाखिल कर सकती है।
इस अनुच्छेद के तहत रिट याचिका सिर्फ मौलिक अधिकारों का हनन पर ही दाखिल हो सकती है और सरकार का कोई मौलिक अधिकार नहीं होता है।
इन आपत्तियों का जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि सरकार नागरिकों की संरक्षक होती है और केंद्र सरकार ने यह याचिका पीड़ितों की ओर से दाखिल की है। केंद्र की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की आपत्तियां दरकिनार करते हुए मामले में मेरिट पर सुनवाई का निश्चय किया। हत्यारों की ओर से पेश रामजेठमलानी ने दया की गुहार लगाते हुए कहा कि दोषी पिछले 27 सालों से जेल में हैं।
पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि राजीव के हत्यारों के साथ कोई रहम न बरती जाए. केंद्र सरकार की अर्जी तमिलनाडु सरकार की उस कदम के विरोध में था जिसमें राजीव के सभी सात हत्यारों की फांसी को उम्र कैद में बदलने का मामला था।