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गांधीजी को अजमेर में गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे अंग्रेज

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 3 2019 3:14PM | Updated Date: Oct 3 2019 3:15PM
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अजमेर। वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान राजस्थान के अजमेर में महात्मा गांधी की सक्रियता के चलते तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें यहीं गिरफ्तार करने की योजना बनाई थी, लेकिन यहां आंदोलन की मजबूती के देखते हुए उन्हें अपना विचार त्यागना पड़ा था। गांधीजी की आजादी के आंदोलन के दौरान अजमेर में सक्रियता बढ़ गई थी। तथ्यों के अनुसार गांधीजी अंग्रेजी शासन के दौरान तीन बार अजमेर आए। वह पहली बार अक्टूबर 1921 में 'असहयोग आंदोलन' के दौरान, दूसरी बार मार्च 1922 में ' जमीयत उलेमा कॉंफ्रेंस' और जुलाई 1934 में 'दलित उद्धार आंदोलन' में शामिल होने के लिए अजमेर आए।
 
वर्ष 1921 में जब गांधीजी पहली बार अजमेर आए तो वह स्थानीय कचहरी रोड (वर्तमान में महात्मा गांधी मार्ग) स्थित अपने नजदीकी सहयोगी गौरी शंकर भार्गव के निवास पर ठहरे। यहां उन्होंने असहयोग आंदोलन को आगे बढ़ाया। उनकी अजमेर में सक्रियता से अंग्रेजी परेशान हो गये और अंग्रेजी हुकूमरानों ने उन्हें यहीं गिरफ्तार करने की योजना बनाई, लेकिन आंदोलन की मजबूती को देखते हुए अंग्रेज अधिकारियों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।
 
हालांकि इस आंदोलन के बाद भी वह अजमेर आते रहे। वर्ष 1922 में गांधीजी दूसरी बार अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह पर जमीयत उलेमा कॉंफ्रेंस में भाग लेने पहुंचे। इस बार भी उनका पड़ाव गौरी शंकर भार्गव के निवास पर रहा। वह कॉंफ्रेंस में शामिल हुए और उनका उलेमाओं से 'अंहिंसा' के मुद्दे पर वैचारिक टकराव उभरा। वह अहिंसा पर अडिग रहे, लेकिन उलेमाओं का तर्क रहा कि हिफाजत के लिए तलवार भी उठाई जा सकती है।
 
इस वैचारिक विवाद के बाद आखिरकार उलेमा झुक गये और उन्होंने गांधीजी के अहिंसा के प्रस्ताव को मान लिया गया। वर्ष 1934 में तीसरी और आखिरी बार गांधीजी का अजमेर आगमन हुआ। यह वह दौर था जब गांधीजी पूरे देश में दलित उद्धार आंदोलन के लिए भ्रमण कर रहे थे। इसी सिलसिले में वह अजमेर आए और दलित वर्ग से जुड़ी निचली बस्तियों के लोगों से मुलाकात भी की। इस दौरान वह अजमेर के ही स्वतंत्रता सेनानी रुद्रदत्त मिश्रा के निवास पर कुछ घंटे रुके थे।
 
अजमेर में जनजागरण करके गांधीजी अजमेर जिले के ही ब्यावर भी पहुंचे थे। ब्यावर भी उनकी सक्रियता का केंद्र रहा। तथ्यों के मुताबिक गांधीजी ने अपनी पहली अजमेर यात्रा के दौरान ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में चादर भी पेश की थी। जब 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी गई तो अंतिम संस्कार के बाद 12 फरवरी 1948 को तीर्थराज पुष्कर सरोवर के गउ घाट पर उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थीं।
 
पुष्कर के रामचन्द्र राधाकृष्ण पाराशर परिवार के पास मौजूद पौथी में गांधीजी की अस्थि विसर्जन का उल्लेख मौजूद हैं जिस पर तत्कालीन पुष्कर कांग्रेस कमेटी के मंत्री वेणीगोपाल सहित स्वतंत्रता सेनानी मुकुटबिहारीलाल भार्गव, कृष्णगोपाल गर्ग आदि के हस्ताक्षर मौजूद है। 
 
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