नई दिल्ली। जाने माने चिंतक एवं स्वदेशी के पैरोकार के. एन. गोविंदाचार्य ने आर्थिक मंदी की वर्तमान स्थिति के लिए उदारीकरण की तीन दशकों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि अगर भारत अमेरिका के रास्ते पर चलता रहा तो उसकी हालत ब्राजील जैसी हो जाएगी। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक गोविंदाचार्य ने शुक्रवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में मांग की कि देश की मौजूदा आर्थिक नीति की समीक्षा करके घरेलू उत्पादन एवं उपभोग पर आधारित प्रकृति के संरक्षण पर केन्द्रित नीतियों को अपनाया जाये।
उन्होंने कहा कि गत दो सदियों में विकास की संकल्पना भौतिक बनती गयी और इसलिए सरकारवाद और बाजारवाद समाज एवं सृष्टि को स्वस्थ एवं परंपरा अनुकूल नहीं बना सके। उन्होंने कहा कि वह उदारीकरण की नीति को आगे बढ़ाने के लिए किसी एक नेता या सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे लेकिन मौजूदा हालात में वक्त की मांग है कि 1991 में अपनायी गयीं आर्थिक नीतियों की समीक्षा की जाये। उन्होंने कहा कि विकास का पैमाना सकल घरेलू उत्पाद को मानने से विषमता दूर नहीं हो रही है, उलटा विषमता बढ़ती जा रही है। इसे रोकने के लिए सोच को बदलना होगा।
गोविंदाचार्य ने कहा कि भारत की जनसंख्या एवं जमीन का अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में भिन्न है। अगर हम अमेरिका के रास्ते पर चलेंगे तो भारत के ब्राजील बनने का खतरा बना रहेगा। वर्ष 2014 तक ब्राजील भी दुनिया की तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार था लेकिन उसके बाद वह घोर मंदी का शिकार होता चला गया। उन्होंने कहा कि उदारीकरण के कारण घरेलू बाजार कमजोर हुए हैं और खेती पर बुरा असर पड़ा है जिससे रोजगार कम हुए। देश की 56 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर होने के बावजूद जीडीपी में कृषि का योगदान 16 प्रतिशत मात्र है।